Friday 27 October 2017

गर्भ ठहरने के उपाय संतान प्राप्ति के सरल नियम

दिन में गर्भाधान के लिए की गयी रति-क्रीड़ा सर्वधा निषेध है। इस समय की संतान अल्पजीवि, रोगी, दुराचारी और अधम होती है। प्रातः और सांध्य काल में की गयी रति क्रिया विशेषकर ब्रह्म मुहूर्त में उत्पन्न काम वेग विनाश का कारण सिद्ध होता है। कामशास्त्र के आचायरें का मत है कि रात्रि के प्रथम प्रहर की संतान अल्पजीति होती है। द्वितीय प्रहर से दरिद्र पुत्र तथा अभागी कन्या पैदा होती है। तृतीय प्रहर के मैथुन से निस्तेज एवं दास वृत्ति का पुत्र या क्रोधी कन्या उत्पन्न होती है। रात्रि के चतुर्थ प्रहर की संतान स्वस्थ, बुद्धिमान, आस्थावान, धर्मपरायण तथा आज्ञाकारी होती है। पुत्र अथवा पुत्री कब उत्पन्न होते हैं : - अनेक विद्वानों के मतानुसार तथा सर्वाधिक चर्चित कामशास्त्र के ग्रथों में भी स्पष्ट लिखा है कि यदि संयम और शास्त्रोक्त नियमानुसार गर्भाधान किया जाता है तो मनवांछित संतान पैदा हो सकती है। जीवशास्त्रियों के अनुसार कुछ मत निम्न प्रकार से हैं 1. हिपोक्रेट्स का मत है कि स्त्री के डिम्बकीट बलवान होने पर पुत्री/स्त्री और पुरुष के शुक्रकीट बलवान होने पर पुत्र उत्पन्न होता है। 2. डॉ मान्सथ्यूरी का कथन है कि रजस्वला होने पर स्त्री के रज में बहुत अधिक चैतन्यता होती है और वह उत्तरोत्तर घटती जाती है, इसलिए ऋतुस्नान के प्रारम्भिक दिनों में यदि गर्भाधान किया जाता है तो कन्या की और बाद के दिनों में पुत्र की सम्भावना अधिक होती है। 3. डॉ पी.एच.सिक्ट के अनुसार स्त्री-पुरुष के दाहिने अंग प्रभाव से पुत्र तथा बाएं अंगों से कन्या उत्पन्न होती है। स्त्री-पुरुष के बाएं अंडकोषों में कन्या तथा दाएं में पुत्र उपार्जन की शक्ति होती है। 4. डॉ लियोपोल्ड का मत है कि जिस स्त्री के मूत्र में शकर की मात्रा अधिक होती है उनको पुत्रियों और जहॉ यह कम परिमाण में होती है वहॉ पुत्र होने की अधिक सम्भावना होती है। 5. डॉ एलवर्ट ह्यूम का मत है कि रजोदर्शन के आरम्भिक काल में स्त्री की कामेच्छा प्रबल होती है इसलिए स्त्री तत्व जागृत होकर वंशवृद्धि का प्रयास करता है अर्थात रजस्वला होने के शीघ्र बाद रति करने पर पुत्री होना लगभग निश्चित होता है। इसके बाद जितना विलम्ब होता है पुत्र की सम्भावना बढ़ जाती है। 6. डॉ हाफकर का मत है कि माता से पिता की आयु अधिक होने पर एवं उसका वीर्य परिपुष्ट होने पर पुत्र पैदा होता है। 7. डॉ फ्रैंकलिन का मत है कि गर्भ-धारण के आरम्भिक दिनों में बलवर्धक भोजन से पुत्र तथा हल्का पदार्थ लेने पर पुत्री उत्पन्न होती है। 8. अनेक लोगों की मान्यता है कि ब्रम्हचर्य के बाद स्वस्थ रति से पुत्र उत्पन्न होता है। 9. चिरकालीन वियोग के पश्चात् एवं शरद ऋतु में सहवास करने से पुत्र का जन्म होता है। 10. आचार्य सुश्रुत का कथन है कि रजोदर्शन से ऋतु स्नान तक की रात्रियॉ त्याज्य हैं। इनके अतिरिक्त रजोदर्शन से गिनी हुई समराशियॉ 4, 6, 8, 10 आदि में गर्भाधान करने से पुत्र और 5, 7, 9 आदि में गर्भाधान करने से पुत्री पैदा होती है। 11. महर्षि वाग्भट्ट का मत है कि स्त्री-पुरुष के दाएं अंगों की प्रधानता से पुत्र तथा बांए से पुत्रियॉ उत्पन्न होती है। 12. चरक का कथन है कि वीर्य की अधिकता से पुत्र और रज की प्रधानता से पुत्री पैदा होती है। 13. पं.कोक का कथन है कि अत्यधिक कामुक और मैथुन करने वालों के कन्याएं अधिक होती हैं। 14. यदि शीर्घ पतन की समस्या है तो पुत्रियों की अधिक सम्भावना होती है। 15. स्वरं योग के आचार्यों का मानना है कि पुरुष की इड़ा नाड़ी अर्थात् दायां स्वर चलते समय का गर्भ पुत्र होता है। पुत्र तथा पुत्री कामना के लिए किए गए गर्भाधान में स्वर शास्त्र का बहुत महत्व है। अतः पुत्र की इच्छा रखने वाले निम्न सारणी में से कोई सी रात्रि का बायां स्वर चलना चाहिए। साथ ही साथ पृथ्वी और जल तत्व का भी संयोग हो। ऋतु स्राव से लेकर चौथी रात्रि तक का गर्भ अल्पायु, दरिद्र पुत्र ’’ छठी ’’ साधारण आयु वाला पुत्र ’’ आठवीं ’’ ऐश्वर्यवान पुत्र ’’ दसवीं ’’ चतुर पुत्र ’’ बारहवीं ’’ उत्तम पुत्र ’’ चौदहवीं ’’ उत्तम पुत्र ’’ सोलहवीं ’’ सर्वगुण सम्पन्न पुत्र इसी प्रकार कन्या के लिए गर्भाधान का वह समय शुभ है जब पुरुष का बांया स्वर और स्त्री का दांया स्वर चल रहा हो तथा सहवास के समय जल तत्व अथवा पृथ्वी तत्व का संयोग हो। इसके लिए रातों का फल निम्न सारणी से स्पष्ट है ऋतु स्राव से लेकर पांचवी रात्रि तक का गर्भ स्वथ्य कन्या ’’ सातवीं ’’ बन्धा कन्या ’’ नवीं ’’ ऐश्वर्यवान कन्या ’’ ग्यारहवीं ’’ दुष्चरित्र कन्या ’’ तेरहवीं ’’ वर्णसंकर वाली कन्या ’’ पंद्रहवीं ’’ सौभाग्यशाली कन्या रति क्रीड़ा में त्याज्य काल : - रजो दर्शन की चार रात्रियॉ, कोई पर्व जैसे अमावस्या,पूर्णिमा, सातवीं, ग्यारहवीं, तथा चोदहवीं रात्रि त्याज्य है। सोलहवीं रात्रि के गर्भाधान से उत्तम संतान का जन्म होता है। दिन : - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सोमवार, गुरुवार तथा शुक्रवार की रातें गर्भाधान के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं। एक उर्दू ग्रंथ में लिखा है कि सोमवार का मालिक चन्द्रमा है और मुश्तरी अर्थात् बुध वजीर है। इस रात्रि में मिलन से प्रखर बुद्धि संतान पैदा होती है। यह समय मॉ के लिए सुखदायी सिद्ध होता है। गुरुवार का मालिक मर्रीख अर्थात गुरु है और वज़ीर सूर्य है। यह समय गर्भाधान के लिए शुभ है। शुक्रवार का मालिक जोहरा अर्थात् जोहरा अर्थात शुक्र है और वज़ीर चन्द्र। इस रात्रि का सहवास अति उत्तम संतान को जन्म देता है। मंगलवार, बुधवार, शनिवार और रविवार रतिक्रिया के लिए त्याज्य दिन कहे गए हैं। शुभ नक्षत्र : - हस्त, श्रवण, पुनर्वसु तथा मृगशिरा गर्भाधान के लिए शुभ नक्षत्र हैं। अशुभ नक्षत्र : - ज्येष्ठा, मूल, मघा, अश्लेषा, रेवतीर, कृतिका, अश्विनी,उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रों में रति क्रीड़ा सर्वथा वर्जित है। इस समय का गर्भाधान त्याज्य है। शुभ लग्न : - वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, धनु तथा मीन लग्नों में गर्भाधान होना शुभ है। अन्य लग्न इसके लिए त्याज्य हैं। गर्भाधान के लिए पूर्णतया त्याज्य : - तीन प्रकार के गण्डान्त, निधन तारा (सातवां), जन्मर्ज्ञ,अश्विनी, भरणी, मघा, मूल तथा रेवती नक्षत्र, ग्रहण काल,पात, वैधृति, श्राद्ध तथा श्राद्ध का पूर्व दिन, परिधि का पूर्वार्ध समय, दिन, सध्याकाल, भद्रा तिथि, उत्पात से हत नक्षत्र,जन्म राशि से अष्टम लग्न, पापयुक्त लग्न, पती तथा पत्नी का चन्द्र तारा अशुद्धि, संक्राहिहहन्त और दोनों पक्षों की 8, 14, 15, 30 तिथियॉ गर्भधारण के लिए मुहूर्त चिन्तामणि,मुहूर्त दीपक आदि ग्रंथों में विशेष रुप से वर्जित कहे गए हैं। कामान्ध व्यक्ति के लिए यह लेख व्यर्थ का सिद्ध होगा। परन्तु यदि अपने बुद्धि-विवके से कोई रति क्रिया और सन्तानोत्पत्ति के यम, नियम और मुहूर्त आदि का पालन करता है तो उसके लिए यह सब वरदान सिद्ध होंगे। वह स्वर्गीय सुख भोगेगा।

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