Friday 27 October 2017

कुंडली से जानें मोटापे का राज

पुरुष हो या स्त्री, परफेक्ट फिगर या संतुलित काया आज समय की माँग हो चली है। इसी के चलते शरीर पर मांस चढ़ते ही स्त्री-पुरुष डाइटिंग के फेर में पड़ने लगते हैं। जिम के चक्कर काटने लगते हैं। वह समय जब तक वे जिम या डाइटिंग के नियम पालते हैं, वजन घटता है। बाद में फिर वही ढाक के तीन पात...
वास्तव में हमारे शरीर की संरचना हमारी कुंडली निर्धारित करती है। चंद्रमा, बृहस्पति और शुक्र ये तीन ग्रह शरीर में वसा की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। वात, पित्त व कफ की मात्रा बढ़ने से शरीर में मोटापा बढ़ता है। इसके अलावा यदि लग्न में जलीय राशि जैसे कर्क, वृश्चिक हो और इनके स्वामी भी शुभ हो या लग्न में जलीय प्रकृति का ग्रह हो तो शरीर पर मोटापा बढ़ेगा ही। ऐसी स्थिति में बाहरी उपाय की बजाय ग्रहों को मजबूत करना फायदा देगा।
1.यदि कुंडली में जलीय लग्न हो, चंद्रमा की स्थिति ठीक न हो तो चाँदी के गिलास में पानी पीना, सफेद वस्तु का सेवन करना लाभ‍दायक रहता है। चंद्र मंत्र का जाप, चंद्र यंत्र धारण करना भी लाभ देते हैं।
2.यदि कुंडली में बृहस्पति खराब हो या उच्च स्थित हो (बुरे भाव का स्वामी होकर) तो तैलीय-मसालेदार भोजन से परहेज रखें। गले में हल्दी की गाँठ गुरुवार को धारण करने से मोटापे पर नियंत्रण हो सकता है। पीली वस्तुओं का दान और गुरु के मंत्र का जाप लाभ दे सकता है।
3.यदि शुक्र खराब होने से मोटापा बढ़ रहा है तो सफेद व ठंडी चीजों से परहेज रखें। मांस-मदिरा के सेवन से बचें। त्रिफला का नियमित सेवन करने से लाभ मिलता है। खट्टी-मीठी वस्तुओं का दान भी लाभ देगा।
कई बार गोचर के ग्रहों का लग्न से भ्रमण होने पर भी मोटापा बढ़ता है। अत: इन ग्रहों का अध्ययन करके अन्य उपायों के साथ इन उपायों को अपनाने से उपयुक्त फल प्राप्त हो सकते हैं।

🌷कठिन परिश्रम के बाद भी भाग्योदय में बाधा और उसके उपाय🌷*

*कठिन परिश्रम के बाद भी किस्मत साथ नहीं दे, और धक्के खाने पड़े तो व्यक्ति निराश हो जाता है।कहावत है कि जैसा करोगे वैसा ही भरोगे। लगातार मेहनत और व्यापार करने पर लाभ की जगह घटा हो रहा हो। ईमानदारी से और कठिन परिश्रम करने के बावजूद भी नौकरी नहीं मिलती हो।योग्यता व पात्रता के आधार पर अच्छा वेतन नहीं मिलता है। आपके जूनियर तरक्की करते जाय आप इसी पद पर वर्षों से रहे। आप अपने आपको कोस रहे हैं। जी हां यदि मेहनत, श्रम और ईमानदारी से काम करने और योग्यता के आधार पर यश, धन, नौकरी, व्यापार,पढ़ाई, विवाह, मकान, दुकान, रोग और सेहत में सुख नहीं मिले लगातार निरंतर हानि, अपयश, रोग,दरिद्रता कम तनख्वाह किराये का मकान में रहना आदि दुख पीछा नहीं छोड़ता है, तो समझ लेना चाहिए, कि भाग्य साथ नहीं दे रहा है। प्रश्न उठता है कि आखिर आप के साथ ही क्यों होता है?*
*1- भाग्य की बाधा के लिये जन्मपत्री में नवम भाव व नवमेश का गहराई से अध्ययन करना चाहिए।*
*2- नवम से नवम अर्थात पंचम भाव व पंचमेश की स्थिति का भी निरीक्षण ध्यानपूर्वक करना चाहिए।*
*3-भाग्य-यश के दाता सूर्य की स्थिति, पाप ग्रहों की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि नीच ग्रहों की दृष्टि के प्रभाव में तो नहीं है।*
*4-धन, वैभव, नौकरी, पति, पुत्र व समृद्धि का दायक गुरु कहीं नीच का होकर पाप प्रभाव में तो नहीं है।*
*5-लग्नेश व लग्न पर कहीं पाप व नीच ग्रहों का प्रभाव तो नहीं है।*
*भाग्य में बाधा डालने वाले कुछ दोष:-*
*1. लग्नेश यदि नीच राशि में, छठे, आठवे, 12 भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।*
*2. राहू यदि लग्न में नीच का शनि जन्मपत्री में किसी भी स्थान में हो, तथा मंगल चतुर्थ स्थान में हो तो भाग्य में बाधा आती है।*
*3. लग्नेश सूर्य चंद्र व राहू के साथ 12वें भाव में हो तो भाग्य में बाधा आती है।*
*4. लग्नेश यदि तुला राशि के सूर्य तथा शनि के साथ छठे, 8वें में हो तो जातक का भाग्य साथ नहीं देता।*
*5. पंचम भाव का स्वामी यदि नीच का हो या वक्री हो तथा छठे, आठवें, 12वें भाव में स्थित हो तो भाग्य के धोखे सहने पड़ते हैं।*
*6.पंचम भाव का स्वामी तथा नवमेश यदि नीच के होकर छठे भाव में हो तो शत्रुओं द्वारा बाधा आती है।*
*7. पंचम भाव पर राहु, केतु तथा सूर्य का प्रभाव हो लग्नेश छठे भाव में हो पितृदोष के कारण भाग्य में बाधा आती है।*
*8. मकर राशि का गुरु पंचम भाव में यदि हो तो भाग्य के धक्के सहने पड़ते हैं।*
*9. पंचमेश यदि 12वें भाव में मीन राशि के बुध के साथ हो भाग्य में बाधा आती है।*
*10. पंचम या नवम भाव में सूर्य उच्च के शनि के साथ हो तो भाग्य में बाधा देखी जाती है।*
*11. नवम भाव में यदि राहु के साथ नवमेश हो तो भाग्य बन जाता है।*
*12. नवम भाव में सूर्य के साथ शुक्र यदि शनि द्वारा देखा जाता हो। तो भाग्य साथ नहीं देता।*
*13. नवमेश यदि 12वें या 8वें भाव में पाप ग्रह द्वारा देखा जाता हो, तो भाग्य साथ नही देता।*
*14. नवम भाव का स्वामी 8वें भाव में राहु के साथ स्थित हो तो पग-पग पर ठोकरे खानी पड़ती है।*
*15. नवमेश यदि द्वितीय भाव में राहु-केतु के साथ,शनि द्वारा देखा जाता है, तो व्यक्ति का भाग्य बंध जाता है।*
*16. नवमेश यदि द्वादश भाव में षष्ठेश के साथ स्थित होकर पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता हो, तो बीमारी कर्जा व रोग के कारण कष्ट उठाने पड़ते है।*
*17. नीच का गुरु नवमेश के साथ अष्टम भाव में राहु, केतु द्वारा दृष्ट हो तो गुरु छठे, 8वें, 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।*
*18. नीचे का गुरु छठे, 8वें, और 12वें राहु शनि द्वारा देखा जाता हो तो भाग्य साथ नहीं देता।*
*भाग्य बाधा निवारण के उपाय:-*
*सूर्य गुरु लग्नेश व भाग्येश के शुभ उपाय करने से भाग्य संबंधी बाधाएं दूर हो जाती है।*
*1. गायत्री मंत्र का जाप करके भगवान सूर्य को जल दें।*
*2. प्रात:काल उठकर माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लें।*
*3. अपने ज्ञान, सामर्थ और पद प्रतिष्ठा का कभी भी अहंकार न करें।*
*4. किसी भी निर्बल व असहाय व्यक्ति की बददुआ न ले।*
*5. वद्धाश्रम और कमजोर वर्ग की यदाशक्ति तन, मन और धन से मदद करें।*
*6. सप्ताह में एक दिन मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा जाकर ईश्वर से शुभ मंगल की प्रार्थना करें। मंदिर निर्माण में लोहा, सीमेंट, सरिया इत्यादि का दान देकर मंदिर निर्माण में मदद करें।*
*7. पांच सोमवार रुद्र अभिषेक करने से भाग्य संबंधी अवरोध दूर होते है।*
*8. 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का जाप 108 बार रोज करने से बंधा हुआ भाग्य खुलने लगता है।*
*9. भाग्यस्थ अथवा अष्टमस्थ राहु अथवा इन दोनों स्थानों पर राहु की दृष्टि भाग्योदय में बाधा का बडा कारण होती है।*
*राहु की दशा, अंतदर्शा अथवा प्रत्यंतर दशा में अकसर भाग्य बाधित होता है।अत: कुंडली में इस प्रकार के योग बन रहे हों तो उक्त राहु की शांति करानी चाहिए। इसके लिए अज्ञात पितर दोष निवृत्ति हेतु नारायणबली, नागबली कराने से जीवन में भाग्योदय का रास्ता खुलता है।*

।। अति महत्वपूर्ण बातें पूजा से जुड़ी हुई।।

★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।
★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।
★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।
★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।
★ जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।
★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।
★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।
★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।
★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।
★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,
★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।
★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।
★ देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।
★ किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।
★ एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।
★ बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।
★ शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।
★ शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती।
★ शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।
★ अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावंे।
★ नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।
★ विष्णु भगवान को चावल गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।
★ पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।
★ किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।
★पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।
★ सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।
★ गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।
★ पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।
★ दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।
★ सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।
★ पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।
★ पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।
★ घी का दीपक अपने बांयी ओर तथा देवता को दाहिने ओर रखें एवं चांवल पर दीपक रखकर प्रज्वलित करें।

विवाह में देरी के कारण

मुख्यत: सातवाँ भाव विवाह, पत्नी या पति और वैवाहिक सुख को दर्शाता है। यदि सातवाँ भाव मंगल के प्रभाव में हो (दृष्टि या स्थिति द्वारा), तो यह मंगल दोष की स्थिति पैदा करता है। जब मंगल लग्न से पहले, दूसरे, चौथे, आठवें या बारहवें घर में हो, तो जातक मांगलिक कहलाता है। हालाँकि कुछ ज्योतिषी इस स्थिति को चन्द्रमा या चन्द्र-लग्न और शुक्र के आधार मानते हैं।
न सिर्फ मंगल की नकारात्मक स्थिति सातवें भाव को खऱाब करती है, बल्कि कई दूसरी चीज़ें जैसे कि शनि, राहु-केतु और सूर्य आदि अन्य ग्रहों की स्थिति भी इसपर ख़ासा प्रभाव डालती हैं। सातवें भाव के स्वामी की स्थिति का भी शादीशुदा जि़न्दगी पर बहुत असर होता है। अगर सातवें भाव का स्वामी दु:स्थान में है अर्थात 6, 8 या 12 में बैठा है, तो वैवाहिक जीवन पर इसका बुरा असर होता है। पुरुषों के लिए सातवें भाव का कारक शुक्र है और स्त्रियों के लिए गुरू। अगर किसी भाव का कारक ख़ुद उसी भाव में बैठा हो तो वह उस भाव के प्रभावों को नष्ट कर देता है।
कुछ ऐसे सामान्य योग जो विवाह में विलम्ब करते हैं, निम्नांकित हैं -
1. यदि शनि लग्न या चन्द्रमा से पहले, तीसरे, पाँचवें, सातवें, दसवें स्थान पर हो और वह किसी शुभ भाव में न हो।
2. सातवें भाव में शनि आदि किसी अशुभ ग्रह या वहाँ मंगल का अपनी ही राशि में होना शादी में देरी की वजह बनते हैं।
3. अगर मंगल और शुक्र पाँचवें, सातवें या नौवें घर में साथ बैठे हों और उनपर गुरू की अशुभ दृष्टि हो।
4. यदि सातवें भाव के स्वामी और बृहस्पति को शनि देख रहा हो।
5. सातवें भाव के किसी भी ओर अशुभ ग्रहों का होना भी विवाह में देरी का कारण बनता है। ऐसे में सातवाँ घर पापकर्तरी योग के अन्तर्गत आ जाता है।
6. अगर लग्न, सूर्य और चन्द्रमा पर अशुभ दृष्टियाँ हों।
7. जब सातवें भाव का स्वामी सातवें भाव से छठे, दूसरे या बारहवें घर में स्थित हो, तो लड़की की शादी में विलम्ब होता है। यह विवाह में देरी का प्रबल योग है और अशुभ ग्रहों के सातवें भाव के स्वामी के साथ बैठने या स्वयं सातवें भाव में बैठने से और भी शक्तिशाली हो जाता है।
8. राहु और शुक्र लग्न में हों या सातवें भाव में हों अथवा मंगल और सूर्य अन्य नकारात्मक कारकों के साथ सातवें भाव में हों, तो विवाह में देरी तय है।
9. जब सूर्य, चन्द्र और पाँचवें भाव का स्वामी शनि के साथ युति कर रहे हों या उनपर शनि की दृष्टि हो।
10. यदि सातवें का स्वामी, लग्न और शुक्र मिथुन, सिंह, कन्या या धनु राशि में हो।
11. शुक्र और चन्द्रमा की युति पर मंगल और शनि की दृष्टि हो और सातवाँ भाव गुरू द्वारा न देखा जा रहा हो या पहले, सातवें और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों।
12. शनि दूसरे, राहु नौवें, सातवें का स्वामी और अशुभ ग्रह तीसरे भाव में हों।

कौन से ग्रह बाधक बनते है संतान सुख में? जानें उचित समाधान

वेदों के अनुसार आत्मा को अजर-अमर कहा गया है। गीता में भी कहा गया है कि, जिस प्रकार मनुष्य फटे हुए जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण कर लेता है। ठीक उसी प्रकार यह जीवात्मा पुराने जीर्ण शरीर को त्यागकर नई देह को धारण कर लेती है। हमारे यहां पुनर्जन्म का सिद्धांत है।
हर जीवात्मा अपने पूर्व कर्मों के अनुसार निश्चित मां-बाप के यहां जन्म लेती है और जन्म लेते समय आकाश में ग्रहों और नक्षत्रों की जो स्थिति होती है उस आकाशीय नक्शे के अनुसार व्यक्ति का जीवन निर्धारण होता है। जिसे ज्योतिष शास्त्र जन्मांग या कुंडली का नाम देता है।
एक कुशल ज्योतिषी व्यक्ति के जन्मांग से ज्योतिष के द्वारा उसके भूत, भविष्य, प्रकृति और चरित्र को जान लेता है। जन्मांग व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का दर्पण होता है। कुंडली के बाहर भाव जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से संबंधित रहते हैं लेकिन मैं यहां केवल पंचम भाव से संबंधित संतान क्षेत्र को ही पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
बुद्धि प्रबंधात्मजमंत्र विद्या विनेयगर्भ स्थितिनीति संस्था:।
सुताभिधाने भवने नराणां होरागमज्ञै: परिचिन्तनीयम्।।
जातकाभरणम्
बुद्धि, प्रबंध, संतान, मंत्र (गुप्त विचार), गर्भ की स्थिति, नीति आदि शुभाशुभ विचार पंचम भाव से करना चाहिए। पंचम भाव की राशि एवं पंचमेश, पंचमेश किस राशि एवं स्थान में बैठा है तथा उसके साथ कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं। पंचम भाव पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि है, पुत्र कारक गुरु, नवम भाव तथा नवमेश की स्थिति, नवम भाव पंचम से पंचम होता है।
अत: यह पोते का स्थान भी कहलाता है। पंचम भाव के स्वामी पर किन-किन भावेशों की दृष्टि है, पंचमेश कारक है या अकारक, सौम्य ग्रह है या दृष्ट ग्रह तथा पंचम भाव से संबंधित दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतदशा आदि।
संतानधिपते: पञ्चषष्ठरि: फस्थिवेखले।
पुत्रोभावो भवेत्तस्य यदि जातो न जीवति।।
पंचमेश से 5/6/10 में यदि केवल पापग्रह हो तो उसको संतान नहीं होती, हो भी तो जीवित नहीं रहती हैं।
मंदस्य वर्गे सुतभाव संस्थे निशाकरस्थेऽपि च वीक्षितेऽमिन्।
दिवाकरेणोशनसा नरस्क पुनर्भवासंभव सूनुलब्धे:।।
पंचम भाव में शनि के वर्ग हों तथा उसमें चंद्रमा बैठा हो और रवि अथवा शुक्र से दृष्ट हो तो उसको पौनर्भ व (विधवा स्त्री से विवाह करके उत्पन्न) पुत्र होता है।
नवांशका: पंचम भाव संस्था यावन्मितै : पापखगै:द्रदृष्टा:।
नश्यंति गर्भ: खलु तत्प्रमाणाश्चे दीक्षितं नो शुभखेचरेंद्रे :।।
पंचम भाव नवमांश पर जितने पापग्रह की दृष्टि हो उतने गर्भ नष्ट होते हैं किन्तु यदि उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो।
भूनंदनों नंदनभावयातो जातं च जातं तनयं निहन्ति।
दृष्टे यदा चित्र शिखण्डिजेन भृगो: सुतेन प्रथमोपन्नम्।।
पंचम भाव में केवल मंगल का योग हो तो संतान बार-बार होकर मर जाती है। यदि गुरु या शुक्र की दृष्टि हो तो केवल एक संतति नष्ट होती है और अन्य संतति जीवित रहती है। बंध्या योग, काक बंध्या योग, विषय कन्या योग, मृतवत्सा योग, संतित बाधा योग एवं गर्भपात योग स्त्रियों की कुंडली में होकर उन्हें संतान सुख से वंचित कर देते हैं। इस प्रकार के कुछ योग निम्रलिखित हैं :
लगन और चंद्र लगन से पंचम एवं नवम स्थान से पापग्रहों के बैठने से तथा उस पर शत्रु ग्रह की दृष्टि हो। लगन, पंचम, नवम तथा पुत्रकारक गुरु पर पाप प्रभाव हो लगन से पंचम स्थान में तीन पाप ग्रहों और उन पर शत्रु ग्रह की दृष्टि हो। आठवें स्थान में शनि या सूर्य स्वक्षेत्री हो। तीसरे स्थान पर स्वामी तीसरे ही स्थान में पांचवें या बारहवें में हो और पंचम भाव का स्वामी छठे स्थान में चला गया हो।
जिस महिला जातक की कुंडली में लगन में मंगल एवं शनि इकठे बैठे हों। लगन में मकर या कुम्भ राशि हो। मेष या वृश्चिक हो और उसमें चंद्रमा स्थित हो तथा उस पर पापग्रहों की दृष्टि हो।
पांचवें या सातवें स्थान में सूर्य एवं राहू एक साथ हों। पांचवें भाव का स्वामी बारहवें स्थान में व बारहवें स्थान का स्वामी पांचवें भाव में बैठा हो और इनमें से कोई भी पाप ग्रह की पूर्ण दृष्टि में हो।
आठवें स्थान में शुभ ग्रह स्थित हो साथ ही पांचवें तथा ग्यारहवें घर में पापग्रह हों। सप्तम स्थान में मंगल-शनि का योग हो और पांचवें स्थान का स्वामी त्रिक स्थान में बैठा हो।
पंचम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो और उसमें राहू की उपस्थिति हो या राहू पर मंगल की दृष्टि हो। शनि यदि पंचम भाव में स्थित हो और चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि में हो और पंचम भाव का स्वामी राहू के साथ स्थित हो।
मंगल दूसरे भाव में, शनि तीसरे भाव में तथा गुरु नवम या पंचम भाव में हो तो पुत्र संतान का अभाव होता है। यदि गुरु-राहू की युति हो। पंचम भाव का स्वामी कमजोर हो एवं लग्न का स्वामी मंगल के साथ स्थित हो अथवा लगन में राहू हो, गुरु साथ में हो और पांचवें भाव का स्वामी त्रिक स्थान में चला गया हो।
पंचम भाव में मिथुन या कन्या राशि हो और बंधु मंगल के नवमांश में मंगल के साथ ही बैठ गया हो और राहू तथा गुलिक लगन में स्थित हो। आदि-आदि कई योगों का वर्णन ज्योतिष ग्रंथों में मिलता है जो संतति सुख हानि करता है तथा कुंडली मिलान करते समय सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए इन्हें विचार में लाना अति आवश्यक होता है।
पति या पत्नी में से किसी एक की कुंडली में संतानहीनता योग होता है तो दाम्पत्य जीवन नीरस हो जाता है। अनुभव में यह भी नहीं पाया गया है कि संतानहीनता योग वाली महिला की शादी संतति योग वाले पुरुष के साथ की जाए अथवा संतानहीन योग वाले पुरुष की शादी संतित योगा वाली महिला के साथ की जाए और इस प्रकार का कुयोग दूर हो जाए लेकिन यह कुयोग नहीं कटता और जीवन भर संतान का अभाव बना रहता है। ऐसी स्थिति में ईश कृपा, देव कृपा या संत कृपा ही इस कुयोग को काट सकती है। निम्र उपाय भी संतान सुख देने में सहायक होते हैं।
षष्ठी देवी का जप पूजन एवं स्त्रोत पाठ आदि का अनुष्ठान पुत्रहीन व्यक्ति को सुयोग पुत्र संतान देने में सहायक होता है।
संतान गोपाल मंत्र- ॐ क्लीं ॐ क्लीं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि ने तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ का जप एवं संतान गोपाल स्रोत का नियमित पाठ भी संतति सुख प्रदान करने वाला होता है।
इसके अतिरिक्त भगवान शिव की आराधना एवं जप, पूजा, अनुष्ठान, कन्या दान, गौदान एवं अन्य यंत्र-तंत्र तथा औषधियां अपनाने से भी संतति सुख प्राप्त किया जा सकता है।
गुरु, माता-पिता, ब्राह्मण, गाय आदि की सेवा, पुण्य, दान, यज्ञ आदि संतानहीनता को मिटाने वाले होते हैं।

गर्भ ठहरने के उपाय संतान प्राप्ति के सरल नियम

दिन में गर्भाधान के लिए की गयी रति-क्रीड़ा सर्वधा निषेध है। इस समय की संतान अल्पजीवि, रोगी, दुराचारी और अधम होती है। प्रातः और सांध्य काल में की गयी रति क्रिया विशेषकर ब्रह्म मुहूर्त में उत्पन्न काम वेग विनाश का कारण सिद्ध होता है। कामशास्त्र के आचायरें का मत है कि रात्रि के प्रथम प्रहर की संतान अल्पजीति होती है। द्वितीय प्रहर से दरिद्र पुत्र तथा अभागी कन्या पैदा होती है। तृतीय प्रहर के मैथुन से निस्तेज एवं दास वृत्ति का पुत्र या क्रोधी कन्या उत्पन्न होती है। रात्रि के चतुर्थ प्रहर की संतान स्वस्थ, बुद्धिमान, आस्थावान, धर्मपरायण तथा आज्ञाकारी होती है। पुत्र अथवा पुत्री कब उत्पन्न होते हैं : - अनेक विद्वानों के मतानुसार तथा सर्वाधिक चर्चित कामशास्त्र के ग्रथों में भी स्पष्ट लिखा है कि यदि संयम और शास्त्रोक्त नियमानुसार गर्भाधान किया जाता है तो मनवांछित संतान पैदा हो सकती है। जीवशास्त्रियों के अनुसार कुछ मत निम्न प्रकार से हैं 1. हिपोक्रेट्स का मत है कि स्त्री के डिम्बकीट बलवान होने पर पुत्री/स्त्री और पुरुष के शुक्रकीट बलवान होने पर पुत्र उत्पन्न होता है। 2. डॉ मान्सथ्यूरी का कथन है कि रजस्वला होने पर स्त्री के रज में बहुत अधिक चैतन्यता होती है और वह उत्तरोत्तर घटती जाती है, इसलिए ऋतुस्नान के प्रारम्भिक दिनों में यदि गर्भाधान किया जाता है तो कन्या की और बाद के दिनों में पुत्र की सम्भावना अधिक होती है। 3. डॉ पी.एच.सिक्ट के अनुसार स्त्री-पुरुष के दाहिने अंग प्रभाव से पुत्र तथा बाएं अंगों से कन्या उत्पन्न होती है। स्त्री-पुरुष के बाएं अंडकोषों में कन्या तथा दाएं में पुत्र उपार्जन की शक्ति होती है। 4. डॉ लियोपोल्ड का मत है कि जिस स्त्री के मूत्र में शकर की मात्रा अधिक होती है उनको पुत्रियों और जहॉ यह कम परिमाण में होती है वहॉ पुत्र होने की अधिक सम्भावना होती है। 5. डॉ एलवर्ट ह्यूम का मत है कि रजोदर्शन के आरम्भिक काल में स्त्री की कामेच्छा प्रबल होती है इसलिए स्त्री तत्व जागृत होकर वंशवृद्धि का प्रयास करता है अर्थात रजस्वला होने के शीघ्र बाद रति करने पर पुत्री होना लगभग निश्चित होता है। इसके बाद जितना विलम्ब होता है पुत्र की सम्भावना बढ़ जाती है। 6. डॉ हाफकर का मत है कि माता से पिता की आयु अधिक होने पर एवं उसका वीर्य परिपुष्ट होने पर पुत्र पैदा होता है। 7. डॉ फ्रैंकलिन का मत है कि गर्भ-धारण के आरम्भिक दिनों में बलवर्धक भोजन से पुत्र तथा हल्का पदार्थ लेने पर पुत्री उत्पन्न होती है। 8. अनेक लोगों की मान्यता है कि ब्रम्हचर्य के बाद स्वस्थ रति से पुत्र उत्पन्न होता है। 9. चिरकालीन वियोग के पश्चात् एवं शरद ऋतु में सहवास करने से पुत्र का जन्म होता है। 10. आचार्य सुश्रुत का कथन है कि रजोदर्शन से ऋतु स्नान तक की रात्रियॉ त्याज्य हैं। इनके अतिरिक्त रजोदर्शन से गिनी हुई समराशियॉ 4, 6, 8, 10 आदि में गर्भाधान करने से पुत्र और 5, 7, 9 आदि में गर्भाधान करने से पुत्री पैदा होती है। 11. महर्षि वाग्भट्ट का मत है कि स्त्री-पुरुष के दाएं अंगों की प्रधानता से पुत्र तथा बांए से पुत्रियॉ उत्पन्न होती है। 12. चरक का कथन है कि वीर्य की अधिकता से पुत्र और रज की प्रधानता से पुत्री पैदा होती है। 13. पं.कोक का कथन है कि अत्यधिक कामुक और मैथुन करने वालों के कन्याएं अधिक होती हैं। 14. यदि शीर्घ पतन की समस्या है तो पुत्रियों की अधिक सम्भावना होती है। 15. स्वरं योग के आचार्यों का मानना है कि पुरुष की इड़ा नाड़ी अर्थात् दायां स्वर चलते समय का गर्भ पुत्र होता है। पुत्र तथा पुत्री कामना के लिए किए गए गर्भाधान में स्वर शास्त्र का बहुत महत्व है। अतः पुत्र की इच्छा रखने वाले निम्न सारणी में से कोई सी रात्रि का बायां स्वर चलना चाहिए। साथ ही साथ पृथ्वी और जल तत्व का भी संयोग हो। ऋतु स्राव से लेकर चौथी रात्रि तक का गर्भ अल्पायु, दरिद्र पुत्र ’’ छठी ’’ साधारण आयु वाला पुत्र ’’ आठवीं ’’ ऐश्वर्यवान पुत्र ’’ दसवीं ’’ चतुर पुत्र ’’ बारहवीं ’’ उत्तम पुत्र ’’ चौदहवीं ’’ उत्तम पुत्र ’’ सोलहवीं ’’ सर्वगुण सम्पन्न पुत्र इसी प्रकार कन्या के लिए गर्भाधान का वह समय शुभ है जब पुरुष का बांया स्वर और स्त्री का दांया स्वर चल रहा हो तथा सहवास के समय जल तत्व अथवा पृथ्वी तत्व का संयोग हो। इसके लिए रातों का फल निम्न सारणी से स्पष्ट है ऋतु स्राव से लेकर पांचवी रात्रि तक का गर्भ स्वथ्य कन्या ’’ सातवीं ’’ बन्धा कन्या ’’ नवीं ’’ ऐश्वर्यवान कन्या ’’ ग्यारहवीं ’’ दुष्चरित्र कन्या ’’ तेरहवीं ’’ वर्णसंकर वाली कन्या ’’ पंद्रहवीं ’’ सौभाग्यशाली कन्या रति क्रीड़ा में त्याज्य काल : - रजो दर्शन की चार रात्रियॉ, कोई पर्व जैसे अमावस्या,पूर्णिमा, सातवीं, ग्यारहवीं, तथा चोदहवीं रात्रि त्याज्य है। सोलहवीं रात्रि के गर्भाधान से उत्तम संतान का जन्म होता है। दिन : - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सोमवार, गुरुवार तथा शुक्रवार की रातें गर्भाधान के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं। एक उर्दू ग्रंथ में लिखा है कि सोमवार का मालिक चन्द्रमा है और मुश्तरी अर्थात् बुध वजीर है। इस रात्रि में मिलन से प्रखर बुद्धि संतान पैदा होती है। यह समय मॉ के लिए सुखदायी सिद्ध होता है। गुरुवार का मालिक मर्रीख अर्थात गुरु है और वज़ीर सूर्य है। यह समय गर्भाधान के लिए शुभ है। शुक्रवार का मालिक जोहरा अर्थात् जोहरा अर्थात शुक्र है और वज़ीर चन्द्र। इस रात्रि का सहवास अति उत्तम संतान को जन्म देता है। मंगलवार, बुधवार, शनिवार और रविवार रतिक्रिया के लिए त्याज्य दिन कहे गए हैं। शुभ नक्षत्र : - हस्त, श्रवण, पुनर्वसु तथा मृगशिरा गर्भाधान के लिए शुभ नक्षत्र हैं। अशुभ नक्षत्र : - ज्येष्ठा, मूल, मघा, अश्लेषा, रेवतीर, कृतिका, अश्विनी,उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रों में रति क्रीड़ा सर्वथा वर्जित है। इस समय का गर्भाधान त्याज्य है। शुभ लग्न : - वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, धनु तथा मीन लग्नों में गर्भाधान होना शुभ है। अन्य लग्न इसके लिए त्याज्य हैं। गर्भाधान के लिए पूर्णतया त्याज्य : - तीन प्रकार के गण्डान्त, निधन तारा (सातवां), जन्मर्ज्ञ,अश्विनी, भरणी, मघा, मूल तथा रेवती नक्षत्र, ग्रहण काल,पात, वैधृति, श्राद्ध तथा श्राद्ध का पूर्व दिन, परिधि का पूर्वार्ध समय, दिन, सध्याकाल, भद्रा तिथि, उत्पात से हत नक्षत्र,जन्म राशि से अष्टम लग्न, पापयुक्त लग्न, पती तथा पत्नी का चन्द्र तारा अशुद्धि, संक्राहिहहन्त और दोनों पक्षों की 8, 14, 15, 30 तिथियॉ गर्भधारण के लिए मुहूर्त चिन्तामणि,मुहूर्त दीपक आदि ग्रंथों में विशेष रुप से वर्जित कहे गए हैं। कामान्ध व्यक्ति के लिए यह लेख व्यर्थ का सिद्ध होगा। परन्तु यदि अपने बुद्धि-विवके से कोई रति क्रिया और सन्तानोत्पत्ति के यम, नियम और मुहूर्त आदि का पालन करता है तो उसके लिए यह सब वरदान सिद्ध होंगे। वह स्वर्गीय सुख भोगेगा।

शाम के समय भूल कर भी मत करना ये काम वर्ना...!

1
कहा जाता है कि शाम के समय कुछ ऐसे काम हैं जो वर्जित हैं और इन्हें करने से देवता रूठ जाते हैं। जिसमें सोने से लेकर पढ़ाई करना भी शामिल है। आज हम हम आपको उन्हीं कामों के बारे में बता रहे हैं जो कि मान्यताओं के अनुसार शाम के वक्त नहीं किया जाना चाहिए। आगे की स्लाइड्स में देखें ऐसे काम जो शाम के समय नहीं करने चाहिए।
2
तुलसी के पास दीपक जलाएं, लेकिन जल न चढ़ाएं: रोज शाम को तुलसी के पास दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने पर घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। तुलसी में जल चढ़ाने के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ रहता है। शाम के समय तुलसी में न तो जल चढ़ाना चाहिए और ना ही पत्ते तोड़ना चाहिए। शाम को तुलसी को छूना भी नहीं चाहिए।
3
शाम को झाड़ू नहीं लगाना चाहिए: ध्यान रखें कि शाम को झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर घर से सकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है और घर में दरिद्रता आती है। शाम से पहले ही घर साफ कर लेना चाहिए।
4
बुराई और चुगली न करें: दूसरों की बुराई करना या चुगली करना भी पाप ही है। इस काम से हमेशा बचना चाहिए। विशेष रूप से शाम के समय किसी बुराई या चुगली न करें। कुछ लोगों को दूसरों की बुराई करने में आनंद मिलता है, लेकिन ऐसा करने से हमें कोई लाभ नहीं मिलता है, बल्कि समाज में हमारी ही इज्जत कम होती है।
5
प्रेम-प्रसंग से बचें: पति-पत्नी को शाम के समय संबंध नहीं बनाने चाहिए। इस काम के लिए रात का समय ही सर्वश्रेष्ठ रहता है। शाम को घर का वातावरण धार्मिक और पवित्र बनाए रखना चाहिए। संबंध बनाने के बाद शरीर की पवित्रता खत्म हो जाती है, इसीलिए शाम को इस काम से बचें।
6
सोना नहीं चाहिए: शाम को सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। जो लोग शाम को नियमित रूप से सोते हैं, वे मोटापा का शिकार हो सकते हैं। जो लोग बीमार हैं, बुजुर्ग हैं, जो स्त्री गर्भवती है, वह शाम के समय सो सकती है। स्वस्थ लोगों को शाम को सोना नहीं चाहिए, वरना आलस्य बढ़ेगा। जिन घरों में लोग शाम को सोते हैं, वहां लक्ष्मी निवास नहीं करती हैं।
7
क्रोध न करें: जो लोग बहुत अधिक गुस्सा करते हैं, वे खुद के स्वास्थ्य को तो नुकसान पहुंचाते हैं, साथ ही दूसरों को भी दुख देते हैं। कभी-कभी क्रोध में ऐसी बातें भी कह दी जाती हैं, जिनसे परेशानियां और अधिक बढ़ जाती हैं। किसी भी प्रकार क्रोध को काबू कर लेना चाहिए। क्रोध करेंगे तो घर में अशांति बढ़ जाएगी। शाम को लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और ऐसे में हमारे घर में अशांति होगी तो लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं हो पाएगी।
8
पढ़ाई ना करें: वहीं शाम के वक्त पढ़ाई भी नहीं करनी चाहिए, जबकि सुबह के वक्त पढ़ाई करनी चाहिए।
9
खाना ना खाएं: कहा जाता है कि शाम के वक्त खाना नहीं खाना चाहिए। शाम के वक्त खाना खाने से पेट की समस्याएं भी होती है और मान्यताओं के अनुसार भी ऐसा नहीं करना चाहिए।

Thursday 26 October 2017

प्रेम विवाह

प्रेमी के साथ विवाह के रास्ते की सारी बाधाएं दूर करने का मंत्र ...
शास्त्र में कुछ ऐसे मंत्रों का उल्लेख किया गया है, जिसके बारे में मानना है कि इसका जाप करने से प्रेमी के साथ विवाह के रास्ते की सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं। आइए जानें, लव मैरिज की सफलता के लिए किस-किस मंत्र का जाप करना बेहतर माना जाता है
अपने प्रेमी को आकर्षित करने के लिए लोग इस मंत्र का करते हैं जाप..
ॐ क्लीं कृष्णाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा
प्रेमी को अपना बनाने के लिए इस मंत्र के जाप का भी कई जगह उल्लेख है:
केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता,
रूद्र रूपा रूद्र मूर्ति: रूद्राणी रूद्र देवता।
कहा जाता है कि अपने प्रेमी या प्रेमिका के लिए मन से उपरोक्त मंत्रों का जाप करते हुए भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करना चाहिए। प्रेम- विवाह में अवश्य सफलता मिलेगी। प्रत्येक शुक्रवार को राधा-कृष्ण की प्रतिमा के सामने इन मंत्रों का सच्चे मन से 108 बार जाप करें। लोग कहते हैं कि 3 माह के अंदर प्रेम-विवाह में आ रही सारी अड़चनें दूर हो जाती हैं और सफलता के रास्ते बन जाते हैं।
कहते हैं कि शुक्ल पक्ष के गुरुवार से इस प्रयोग को आरंभ करना चाहिए। भगवान विष्णु और लक्ष्मी मां की मूर्ति के सामने बैठकर
'ॐ लक्ष्मी नारायणाय नमः'
मंत्र का दिन में तीन बार स्फटिक का माला पर जप करें। इसे शुक्ल पक्ष के गुरुवार से ही शुरू करना चाहिए। कहा जाता है कि तीन महीने तक हर गुरुवार को मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर विवाह की सफलता के लिए प्रार्थना करना फलदायक साबित होता है।
यदि प्रेम-विवाह में कोई बाधा आ रही हो तो 5 नारियल लेकर इसे भगवान शंकर की मूर्ति के आगे रखकर
'ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नमः'
मंत्र का जाप बार करें। यह जाप स्फटिक या रूद्राक्ष की माला पर पांच माला फेरते हुए करें। इसके बाद वे पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढ़ाएं, विवाह की बाधाएं दूर होती नजर आएंगी।
कुछ पंडितों का कहना है कि प्रत्येक सोमवार को यदि सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर
'ऊं सोमेश्वराय नमः
' का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढ़ाएं और वहीं मंदिर में बैठकर रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का एक माला जप करें तो विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आने लगेगी।

श्री गायत्री मंत्र की खास बातें और चमत्कारी उपाय

मंत्र जप ऐसा उपाय है जिससे किसी भी प्रकार की समस्या को दूर किया जा सकता है। मंत्रों की शक्ति से सभी भलीभांति परिचित हैं। मनचाही वस्तु प्राप्ति और इच्छा पूर्ति के लिए मंत्र जप से अधिक अच्छा साधन कोई और नहीं है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र सबसे दिव्य और चमत्कारी है। इस जप से बहुत जल्द परिणाम प्राप्त हो जाते हैं।
गायत्री मंत्र
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोदयात्।।
गायत्री मंत्र का अर्थ: सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते है, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
इस मंत्र को जाप करने के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना श्रेष्ठ होता है।
शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों को सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इस मंत्र जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। इन तीन समय को संध्याकाल भी कहा जाता हैं।
गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।
मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए।
इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
स मंत्र के जप से हमें यह दस लाभ प्राप्त होते हैं
उत्साह एवं सकारात्मकता, त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, परमार्थ में रूचि जागती है, पूर्वाभास होने लगता है, आर्शीवाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्र सिद्धि प्राप्त होती है, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है।
🌺 विद्यार्थीयों के लिए🌺
गायत्री मंत्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मंत्र बहुत लाभदायक है। रोजाना इस मंत्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में आसानी होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है।
🌺दरिद्रता के नाश के लिए🌺
यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मंत्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र पहनकर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान कर गायत्री मंत्र के आगे और पीछे “श्रीं” सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो ज्यादा लाभ होता है।
🌺 संतान संबंधी परेशानियां दूर करने के लिए🌺
किसी दंपत्ति को संतान प्राप्त करने में कठिनाई आ रही हो या संतान से दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर “यौं” बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। संतान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है।
🌺 शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए🌺
यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे “क्लीं” बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।
🌺 विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो🌺
यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए “ह्रीं” बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं।
🌺 यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो🌺
यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ “ऐं ह्रीं क्लीं” का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं।
जो भी व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह यह उपाय करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।
उपाय इस प्रकार है पीपल, शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में कच्चा दूध भरकर रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जाप करें। इसके बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप करते हुए अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है।
किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही, घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग एवं पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए। गायत्री मंत्रों के साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है। नारियल के बुरे मे यदि शहद का प्रयोग किया जाए तो सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।

रात को सोने से पहले श्री हनुमान चालीसा के उपाय

श्री हनुमानजी को मनाने और उनकी कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल और चमत्कारी उपाय है श्रीहनुमान चालीसा का पाठ। हनुमान चालीसा बहुत ही सरल और मन को शांति प्रदान करने वाली है।
जो लोग धन अभाव से ग्रस्त हैं या घर-परिवार में परेशानियां चल रही हैं या ऑफिस में बॉस और सहयोगियों से रिश्ते बिगड़े हुए हैं या समाज में सम्मान नहीं मिल रहा है या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हैं तो इन्हें दूर करने के लिए हनुमान चालीसा का ये उपाय श्रेष्ठ मार्ग है।
जो लोग मस्तिष्क से संबंधित कार्य में लगे रहते हैं और मानसिक तनाव का सामना करते हैं या जिनका दिमाग अन्य लोगों की अपेक्षा तेज नहीं चलता है तो सोने से पहले हनुमान चालीसा का जप करें। आप पूरी हनुमान चालीसा का जप नहीं कर सकते हैं
तो इन पंक्तियों का जप करें...
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरो पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरेहू कलेश विकार।
पंक्ति में हनुमानजी से यही प्रार्थना की गई है कि हे प्रभु मैं खुद को बुद्धि हीन मानकर आपका ध्यान करता हूं। कृपा करें और मुझे शक्ति, बुद्धि, विद्या दीजिए। मेरे सभी कष्ट-क्लेश दूर कीजिए।
श्री हनुमान चालीसा सुन भी सकते हैं या जप कर सकते हैं। जब आपका मन हो आप आसानी से मोबाइल की मदद से हनुमान चालीसा सुन सकते हैं।
जिन लोगों को बुरे सपने आते हैं, नींद में डर जाते हैं उन्हें सोने से पहले इन पंक्तियों का जप करना चाहिए...
भूत-पिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावे।
पंक्ति के माध्यम से भक्त द्वारा श्री हनुमानजी से भूत-पिशाच आदि के डर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की जाती है। जो भी व्यक्ति इस पंक्ति का जप करता है उसे न तो बुरे सपने आते हैं और न ही कोई भय सताता है। यदि कोई व्यक्ति भयंकर बीमारी से ग्रस्त है तो उसे सोने से पहले इस पंक्ति का जप करना चाहिए...
नासे रोग हरे सब पीरा। जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा।।
पंक्ति से हम बजरंग बली से सभी प्रकार रोगों और पीड़ाओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। जो भी बीमार व्यक्ति इन पंक्तियों का जप करके सोता है उसकी बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है।
यदि कोई व्यक्ति सर्वगुण संपन्न बनना चाहता है और घर-परिवार, समाज में वर्चस्व बनाना चाहता है, सम्मान पाना चाहता है उसे सोने से पहले इस पंक्ति का जप करना चाहिए...
अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
पंक्ति के अनुसार श्री हनुमानजी अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों के दाता है। जो कि उन्हें माता सीता ने प्रदान की है। जिन लोगों के पास ये सिद्धियां और निधियां आ जाती हैं वे समाज में और घर-परिवार में मान-सम्मान, प्रसिद्धि पाते हैं।

Tuesday 24 October 2017

मुकदमा, कोर्ट केस या अटका हुआ कोई केस में जीत प्राप्त करना चाहते हैं तो

मुकदमा, कोर्ट केस या अटका हुआ कोई केस में जीत प्राप्त करना चाहते हैं तो :-
 
 
उपाय :-
21 दिन का गणपति का अनुष्ठान करने से समस्त विघ्नों का नाश होता है।
 
मंत्र :
“ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम: ॐ गं गणपतये नम:”
 
नित्य गणेशजी को लाल चंदन, लाल अक्षत, लालपुष्प, 21 दुर्वा, धूप दीप, लड्डुओं का भोग रखकर लाल आसन पर बैठकर पूजन करें। सर्वत्र सफलता मिलेगी।
 
6 माह तक “संकटमोचन गणेश स्त्रोत” का तीन बार पाठ सुबह दोपहर शाम को करें। सभी परेशानी दूर हो जाएगी। 6 माह बाद 8 ब्राह्मणों को ये स्त्रोत लिखकर दान करने से कार्य पूरे हो जाते हैं।
 
“दीनदयाल बिरदु संभारी, हरहू नाथ मम संकट भारी”
इस चौपाई का 108 बार नित्य पाठ 3 माह करने से सफलता मिलती है।
तत्कालिक समस्या दूर हो जाती है।
 
 
7 मंगलवार 100 पाठ हनुमान चालीसा के करने से बंधन से मुक्ति मिल जाती है। कार्य मंगलता की ओर चला जाता है। मंगलवार को घी का दीपक हनुमान जी के सामने रखकर लाल पुण्प एवं गुड चना का भोग लगाकर ये पाठ करें।
 

नौकरी पाने हेतु अचूक उपाय

अधिकतर लोग इसी समस्या से ग्रस्त हैं कि नौकरी नहीं मिल रही। मिल गई तो उसमें स्थिरता नहीं है। इसके लिए यहां कुछ अचूक उपाय जानिए। पहला तो प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़े।
 
दूसरा किसी महत्वपूर्ण कार्य से बाहर जा रहे हैं तो प्रात:काल तीन इलायची दाएं हाथ की मुट्ठी में रखें और श्रीं श्रीं बोलें और फिर उसे खालें, खाने के बाद बाहर जाएं या चुटकी भर हींग अपने ऊपर से वार कर उत्तर दिशा में फेंक दें।
 
तीसरा उपाय 41 दिन तक शाम को पीपल के वृक्ष के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
 
चौथा किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिन एक पीले वस्त्र पर अपनी अनामिका अंगुली का प्रयोग कर केसर मिश्रित सिंदूर से 63 नंबर लिख लें। फिर उसे ले जाकर माता लक्ष्मी के मंदिर में माता के चरणों में अर्पित कर दें। ऐसा तीन गुरुवार तक करें।

#ग्रहो_के_नक्षत्रो_में_बैठने_पर_फल|



ग्रह अपने स्वभाव/भाव स्वामित्व और राशि नक्षत्रो में बैठने के अनुसार अपना फल देते है।आज इसी बात पर बात करते है, ग्रह नक्षत्रो में बैठने पर किस तरह अपना प्रभाव दिखाता है।ज्योतिष में कुल 9 ग्रह 27 नक्षत्र होते है 12राशियाँ होती है।हर एक ग्रह 3 नक्षत्रो का स्वामी होता है।सामान्य रूप से ज्यादातर ग्रहो के राशियों में बैठने पर विचार किया जाता है लेकिन जो ग्रह जिस नक्षत्र में बैठा होता है उस नक्षत्र और उस नक्षत्र के स्वामी ग्रह का पूर्ण प्रभाव लेकर ऐसा ग्रह फल देता है।यदि ग्रह अपनी नीच,शत्रु राशि में बैठने पर कमजोर हो जाता है लेकिन यदि यही नीच, शत्रु राशि में बैठा ग्रह अपने मित्र के नक्षत्र में हो, अपने उच्च राशि के अधिपति के नक्षत्र में हो तब वह शुभ प्रभाव और ज्यादा से ज्यादा फल देने की स्थिति में आ जाता है तब यदि कुंडली के अनुसार ग्रह शुभ स्थिति में हो।जो ग्रह जिस नक्षत्र में होता है उस नक्षत्र के स्वामी की कुंडली में क्या और कैसी स्थिति है, वह ग्रह कोनसे फलो से सम्बंधित विषयो का कारक है कुंडली में कोनसे भाव का स्वामी है आदि से सम्बन्ध फल नक्षत्र में बैठा ग्रह नक्षत्र के स्वामी के हर तरह से पूर्ण प्रभाव को लेकर फल देगा।मेष लग्न की कुंडली में गुरु भाग्य का स्वामी होता है तो सूर्य बुद्धि, ज्ञान, संतान आदि भाव से सम्बंधित फल का स्वामी होता है।यदि अब सूर्य गुरु के नक्षत्र में बैठा हो और सूर्य का गुरु या भाग्य(नवें)भाव से कोई युति दृष्टि या गुरु से युति दृष्टि सम्बन्ध न भी हो तब भी सूर्य भाग्य को विशेष रूप से प्रभावित करेगा और गुरु ज्ञान, सम्मान, सुख आदि शुभ फलो का कारक है तो गुरु के और अपने से सम्बंधित कारक भाव सम्बंधित फल सूर्य करेगा।इसी तरह अन्य ग्रहो के नक्षत्र में बैठने की स्थिति को कुंडली और ग्रहो के कारक सम्बंधित फल को समझना चाहिए।यदि कोई ग्रह अपने शत्रु के नक्षत्र, नीच राशि के स्वामी के नक्षत्र या कुंडली के अनुसार अशुभ फल देने वाले, अशुभ योग से सम्बंधित ग्रहो के नक्षत्र में होगा तो उसके फल नीच अशुभ योग बनाने वाले ग्रहो,की अशुभ स्थिति के अनुसार अशुभ भी होंगे यदि शुभ योग और प्रभाव है तो फल शुभ होंगे।कोई ग्रह अशुभ नक्षत्र में है तो उस नक्षत्र और उस नक्षत्र से सम्बंधित ग्रहो के मन्त्र जप, पूजा पाठ करके उस नक्षत्र की अशुभता कम की जा सकती है।

FOUR PLANETS IN CONJUNCTION

1.SUN-MOON-MARS-MERCURY YOGA.
Should these four planets be together at birth. the native will be a writer, a thief and be scurrilous in speech. He will be sickly, cunning and be capable of deceiving others.
2. MOON-MARS-JUPITER-SUN YOGA.
one, who has these four planets in one House at birth, will be wealthy, dear to women, splendourous, will maintain decorum, be free from grief and expert in work.
3. MOON-MARS-VENUS-SUN YOGA.
If these four planets join at birth, one will speak and conduct himself, as a great person, be happy, expert, intent on gathering money and will have learning, sons and wife.
4. SUN-MOON-MARS-SATURN YOGA.
One, who has these four planets together at birth, will have uneven physique, be short in stature, be unwealthy and will collect food by begging and be a proven dunce.
5. MOON-MERCURY-JUPITER-SUN YOGA.
If these four planets are in one House, the native will be a goldsmith (or a gold dealer etc.), be long eyed, be a sculptor, be very wealthy, bold and beautiful bodied.
6. SUN-MOON-MERCURY-VENUS YOGA.
The native, who has these four planets together at birth, will be deformed, lucky, short-statured and dear to king.
7. SUN-MOON-MERCURY-SATURN YOGA.
If these four planets are together at birth, the native will lose his parents in childhood, be devoid of money and happiness, be wandering, will earn food by begging and will be a liar.
8. VENUS-JUPITER-MOON YOGA.
Should these planets be in one House at birth, the subject concerned will be head of water, animals and forests (i.e. his livelihood may be through such sources), will be happy, honoured by the king and be an expert.
9. SUN-JUPITER-MOON-SATURN YOGA.
If the said planets join at birth, the native will be dark-eyed, fierce, will have many sons, be wealthy and fortunate through women.
10. SUN-MOON-VENUS-SATURN YOGA.
Should one have a combination of these planets in one House at birth, the native will have habits, like a female, be very weak, desirous of coming up and timid at all times.
11. SUN-JUPITER-MARS-MERCURY YOGA.
These four planets together at birth indicate, that the subject will be brave, be a composer of Shastras, or a ruler of province, will lose his wife and money, be undesirable and will wander.
12. SUN-VENUS-MARS-MERCURY YOGA.
If these four planets be together at birth, the native will be addicted to other women, be a thief, will have uneven limbs, will be a bad person and will be bereft of energy.
13. MERCURY-SUN-MARS-SATURN YOGA.
If these four planets are together at birth, the subject will be a warrior, scholar, be fierce, will be meanly disposed, be chief among poets and be a minister, or a king.
14. SUN-MARS-JUPITER-VENUS YOGA.
with the conjunction of these four planets, one will be fortunate, worth worship by the people, be wealthy, dear to king and famous.
15. SUN-MARS-JUPITER-SATURN YOGA.
Should these join at birth, one will be rash, prime among his group, will have cherished desires, will be endowed with relatives and friends and dear to king.
16. SUN-MARS-VENUS-SATURN YOGA.
One, who has these four planets together at birth, will be deformed, mean in conduct, oblique- sighted, will hate his relatives and will always be insulted.
17. SUN-MERCURY-VENUS YOGA.
With these planets in one House, one will be wealthy, happy, chief, will have cherished desires, will have relatives and be noble.
18. SATURN-SUN-MERCURY-JUPITER YOGA.
One, who has these four planets together at birth, will have a neuters habits, be prestigious, fond of quarrels, will have brothers, or sisters and be not enthusiastic.
19. SUN-MERCURY-VENUS-SATURN YOGA.
Should these four planets be in conjunction at birth, one will be scurrilous in speech, fortunate, learned, soft spoken, happy, energetic, pure, wealthy, bold and helpful to friends.
20. SUN-SATURN-VENUS-JUPITER YOGA.
These four planets in conjunction at birth will make the person a miser, a poet, chief, leader of sculptors and mean.
21. MOON-MARS-MERCURY-JUPITER YOGA.
One, who has the conjunction of these four planets at birth, will be an expert in Shastras, be a king, or a great minister and be extremely intelligent.
22. MOON-MARS-MERCURY-VENUS YOGA.
If these four planets are together at birth, one will be fond of quarrels, will sleep much, be mean, will marry an unchaste lady, be fortunate, will hate his relatives and be not happy.
23. MOON-MERCURY-MARS-SATURN YOGA.
One, who has these four planets together will be bold, be without parents, is from an ignoble race, will have many wives, friends and sons and will have good conduct.
24. MOON-MARS-JUPITER-SATURN YOGA.
If these four planets are together at birth, one will be deformed, will have a good wife, be highly tolerant, be self-respected, learned will have many friends and be happy.
25. MARS-MOON- SATURN-JUPITER YOGA. One, who has these four planets conjunct at birth will be deaf, wealthy, bold, rash in speech, firm in nature, wise and liberal.
26. MARS-MOON-SATURN-VENUS YOGA.
If these four planets are together, one will marry an unchaste lady, will be proud, will have eyes resembling that of a snake and will be always emotional. This is certain.
27. MERCURY-JUPITER-MOON-VENUS YOGA.
One, who has these four planets together will be learned, be devoid of parents, good looking, wealthy, very lucky and be without enemies.
28. MOON-MERCURY-JUPITER-SATURN YOGA.
Should these be conjunct one will be virtuous, famous, noble and splendourous, fond of relatives, wise, be a kings minister and be a chief poet.
29. MOON-MERCURY-SATURN-VENUS YOGA.
If these planets are together at birth, the native will be intent on seeking sexual pleasures with others wives, will have an unchaste wife, be devoid of relatives, learned and will hate people.
30. MOON-JUPITER-VENUS-SATURN YOGA.
The native with these four planets conjunct will be devoid of mother, be lucky, will suffer from skin diseases, will be subjected to grief, be intent on roaming, will know many languages and will be truthful.
31. MERCURY-MARS-JUPITER-VENUS YOGA.
If these four planets are in one House, the subject will be fond of picking up quarrels with his wife, will be wealthy, worshipped by the people, will possess good qualities and be free from sickness.
32. MARS-MERCURY-JUPITER-SATURN YOGA.
One, who has these four planets in one House at birth, will be brave, learned, be a good speaker, be without wealth, truthful and will have good habits. He will be able to argue and endure. He will be intelligent.
33. MERCURY-MARS-SATURN-VENUS YOGA.
If these four planets are together at birth, the native will be an expert boxer, will depend on others, will have coarse body, will possess pride of war, be famous and will breed dogs.
34. MARS-JUPITER-VENUS-SATURN YOGA.
If these four planets are together at birth, the native will be splendourous, wealthy, addicted to other women, fond of bravery, fickle-minded and ill-disposed.
35. MERCURY-JUPITER-VENUS-SATURN YOGA.
Should these be together at birth, the native will be intelligent, interested in Shastras, be a debaucher and an obedient servant.
The above mentioned combination is an analysis based on four planetary conjunction. However, before considering it for literal terms, one should carefully check the house it is forming the conjunction, other planets influencing these conjunctions, and the lord of that house.

Friday 20 October 2017

बच्चों को अच्छी शिक्षा, सदाचार और सदगुण - या धन

संत से प्रवचन के बाद एक सेठ ने निराश होकर कहा, ‘‘गुरुदेव मैंने बड़ी मेहनत से पाई-पाई जोड़कर धन इकट्ठा किया ताकि मेरी सात पुश्तें बैठे-बैठे खा सकें। उस धन को मेरे इकलौते पुत्र ने बड़ी बेदर्दी से कुव्यसनों में बर्बाद करना शुरू कर दिया है। पता नहीं उसको भविष्य में कैसे दिन देखने पड़ेंगे, इसी चिंता में घुला जा रहा हूं।’’
संत ने मुस्कुराकर सेठ से पूछा, ‘‘तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे लिए कितना धन छोड़ा था ?’’
सेठ ने कहा, ‘‘वह तो बहुत गरीब थे। उन्होंने मुझे अच्छे संस्कार दिए लेकिन धन के नाम पर कुछ भी नहीं दिया। जब तक उनके साथ रहा वह मुझे सदाचार और सद्गुणों की सीख ही देते रहे।’’
संत ने कहा, ‘‘तुम्हारे पिता ने तुम्हें सिर्फ सद्गुण सिखाए, कोई धन नहीं दिया, फिर भी तुम धनवान बन गए लेकिन तुम बेटे के लिए अकूत धन जोडऩे के बावजूद सोच रहे हो कि तुम्हारा बेटा तुम्हारे बाद जीवन कैसे बिताएगा ? इसका मतलब ही यह है कि तुमने उसको अच्छे संस्कार, अच्छे गुण नहीं दिए। तुम यह समझ कर धन कमाने में लगे रहे कि पुत्र के लिए दौलत के भंडार भर देना ही मेरा दायित्व है जबकि सदगुण देना यह माता-पिता का संतान के प्रति पहला कर्तव्य होता है। बाकी तो संतान सब अपने बलबूते हासिल कर ही लेती है।’’
संत की बात सुनकर सेठ को अहसास हुआ कि उसने अपने पुत्र को केवल धनवान ही बनाना चाहा। पुण्यवान, संस्कारवान बनाने की तरफ बिल्कुल ध्यान ही नहीं दिया। सेठ पश्चाताप के स्वर में बोला, ‘‘गुरुदेव, आप सही कह रहे हैं। मुझसे बड़ी भूल हुई। क्या अब कुछ नहीं हो सकता ?’’
संत बोले, ‘‘जिंदगी में अच्छी शुरूआत के लिए कभी देर नहीं होती। जब जागो तभी सवेरा। तुम अपने बच्चे के सद्गुणों पर ध्यान दो, बाकी सब भगवान पर छोड़ दो। अच्छे इरादों से किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता।’’
हमे भी आज के दौर में अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ साथ अच्छे संस्कार देना भी बहुत बहुत जरूरी हैं! बिना संस्कार के आज हमारे बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं ये बताने की जरूरत नहीं है!

कल भाईदूज, यम-द्वितीया वा चित्रगुप्त जयंती, (शनिवार) 21 अक्टूबर, 2017 - Bhai Dooj/ Bhai Phota Yam Dvitiya & Chitragupt Jayanti - तिलक करने के लिए शुभ समय

कल (शनिवार ) 21 अक्टूबर, 2017, भाईदूज, यम-द्वितीया वा चित्रगुप्त जयंती भी है।
इस त्योहार के पीछे एक किंवदंती यह है कि यम देवता ने अपनी बहन यमी (यमुना) को इसी दिन दर्शन दिया था, जो बहुत समय से उससे मिलने के लिए व्याकुल थी। भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
अपने घर में भाई यम के आगमन पर यमुना ने प्रफुल्लित मन से उसकी आवभगत की। यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। इसी कारण इस दिन यमुना नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके अलावा यमी ने अपने भाई से यह भी वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, हर भाई अपनी बहन के घर जाए। तभी से भाईदूज मनाने की प्रथा चली आ रही है। जिनकी बहनें दूर रहती हैं, वे भाई अपनी बहनों से मिलने भाईदूज पर अवश्य जाते हैं और उनसे टीका कराकर उपहार आदि देते हैं। बहनें पीढियों पर चावल के घोल से चौक बनाती हैं। इस चौक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं।
चित्रगुप्त जयंती :
यह खासकर कायस्थ वर्ग में अधिक प्रचलित है। उनके ईष्ट देवता ही चित्रगुप्त जी हैं। यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है। कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त। यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं।
द्वितीय तिथि प्रारम्भ : 21 अक्टूबर 2017 को 01:37 बजे.
द्वितीय तिथि समाप्त : 22 अक्टूबर 2017 को 03:00 बजे.
तिलक के लिए शुभ समय :भाई दूज मनाने के लिए ये हैं शुभ मुहूर्त :
21 अक्टूबर
टीका का शुभ मुहूर्त: दोपहर 1:12 से 3:27 तक
द्वितीय तिथि प्रारम्भ : 21 अक्टूबर 2017 को 01:37 बजे.
आपका सप्ताहान्त शुभ और आनंदमय हो !