जन्मकुंडली में यदि राहू और केतु के बीच जब सभी ग्रह आते है तब कालसर्प योग बनता है ..
राहू का नक्षत्र भरणी है और इसका देवता ”काल” है तथा केतु का नक्षत्र आश्लेषा है जिसका देवता ”सर्प ”है इसीलिए इसे कालसर्प कहते है ..
कालसर्प योग के उपाय :-
१-शनिवार को कच्चे नारियल को तिल के तेल का तिलक लगाकर अपने ऊपर से सात बार उतारकर पानी में बहा दे.
२-कालसर्प योग के कारण यदि विवाह और संतान पक्ष पर असर पड़ रहा हो तो राहू और केतु के नक्षत्र की शांति करे .नवनाग पूजन करे और अपने घर के मुख्य दरवाजे पर चाँदी का स्वस्तिक चिन्ह बना कर लगवाये .
३-घर में मयूर पंख रखे और प्रातः उठकर पंख से अपने ऊपर हवा करे .
४-प्रत्येक सक्रांति को गंगाजल का छिडकाव घर के प्रत्येक कमरों में करे .
५-पंचमी का व्रत करे .
६-कालसर्पयोग शांति के लिए शिवार्चन और नाग स्तोत्र का पाठ करे .
नाग स्तोत्र -
अनंतं वासुकिं शेष पद्म नाभं च कम्बलम .
शंख्पालम कर्कोटकम कालियं तक्षकं तथा
एतानि संस्मरे नित्यं आयु कामार्थ सिद्धये
सर्पदोष क्षयार्थम च पुत्र पोत्रान समृद्धये .
तस्मै विष भयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ..
विशेष –
कालसर्प योग का प्रभाव जीवन में मिश्रित फल देता है ..कभी लाभ और कभी हानि. इसलिए कुंडली का सही अध्ययन आवश्यक है
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