Wednesday 8 November 2017

मासिक धर्म के बारे मे हमारा हिन्दू धर्म क्या कहता हैं ?

आज हम मासिक धर्म इस बारे मे धर्म की क्या राय हैं जानते हैं ।
सिख धर्म के पहले गुरु ने मासिक धर्म को लेकर सभी भ्रांतियों को नकारते हुए इसे एक नार्मल प्रोसेस मानने को कहा है. 'गुरु' बाक़ी लोगों को भी मासिक धर्म में इस्तेमाल हुए कपड़े को 'ख़राब' कहने के लिए डांटते हैं. सिख धर्म में कई जगह ये भी लिखा हुआ है कि, 'मां के रक़्त' से ही जीवन की शुरुआत होती है. और ये जीवन के लिए बेहद ज़रूरी है. जीवन की उत्पत्ति मां के लहू और पिता के वीर्य से होती है.
बौद्ध धर्म में मासिक धर्म को एक प्राकृतिक प्रक्रिया के तौर पर देखा जाता है. अगर कोई बुद्धिस्ट नन मासिक धर्म से गुज़र रही है, तो उसे अपने कपड़ों को धो कर पहनने को कहा गया है. इससे वो कपड़े फिर से पवित्र और साफ़-सुथरे माने जाएंगे.
पीरियड्स को यहूदी धर्म में 'निद्दाह' कहते हैं. मासिक धर्म के बारे में सबसे ज़्यादा और विस्तृत तौर पर यहूदी धर्म में कहा गया है. आपको पता है यहूदी औरत के सनसेट से पहले किसी को छूने से अपवित्रता होती है. ज्यूइश लॉ में आप स्त्री को तब तक नहीं छू सकते जब तक वो पवित्र नहीं होती. यहां तक की अगर आपको कोई चीज़ देनी हो तो आपको उसे नीचे रखना होगा और आदमी उसे उठाएगा. इसके अलावा आदमी औरत के एक दूसरे के बिस्तर शेयर करने पर, बीवी का जूठा खाना, उसका परफ्यूम सूंघने पर, उसके कपड़ों को देखने पर या उसे गाना गाते हुए सुनने पर भी मनाही है.
क़ुरान में पीरियड्स के बारे में इतनी डिटेल में नहीं लिखा है, लेकिन एक जगह साफ़ तौर पर लिखा है कि इस दौरान पुरुष महिलाओं से दूर रहे. इसका कारण भी साफ़ किया गया है, कि इसलिए नहीं क्योंकि मासिक धर्म नापाक़ है, बल्कि इस लिए क्योंकि इस वक़्त महिलाओं को दर्द और दिक़्क़त रहती है. लेकिन इस बात लोगों ने बिलकुल ग़लत तरीके से, 'असुविधाजनक', 'नुक़सान पहुंचाने वाला', 'बीमार करने वाला' समझा गया.
इसके साथ ही औरतों को धर्मो-करम से भी दूर रहने को कहा गया. इसके पीछे वजह ये दी जाती है कि मुहम्मद की वाइफ 'आयशा' मक्का के लिए अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाईं क्योंकि उन्हें 'पीरियड्स' हो गए थे. और इसके बाद मुहम्मद ने कहा कि शायद, 'आदम की बेटियों के लिए अल्लाह की ऐसी रज़ा रही होगी'.
ईसाई धर्म के ग्रन्थ 'बाइबिल' में मासिक धर्म का ज़िक्र तब आता जब 'ईव' सेब खा लेती है. वैसे ईसाईयों में महिलाओं को इस दौरान चर्च में जाने की अनुमति होती है लेकिन कुछ कट्टरपंथी ईसाई उन्हें धार्मिक काम-काज में हिसा नहीं लेने देते.
क्या मासिक धर्म के दौरान क्या पूजा
पाठ की जा सकती हैं ?
इस प्रशन का एक ऐसा जवाब है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा - जिस प्रकार आप कभी भी अपने प्रेम, क्रोध और घृणा को प्रकट कर सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपने मस्तिष्क में शुभ-अशुभ विचार ला सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपनी जुबान से कड़वे या मीठे बोल बोल सकते हैं, उसी प्रकार आप कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थिति में प्रभु का ध्यान, उनका चिंतन, उनका स्मरण, उनका सिमरन या मानसिक जप कर सकते हैं।
हांलकी परंपराएं और कर्मकांड, प्रतिमा के स्पर्श, मंदिर जाने या धार्मिक आयोजनों में शामिल होने की सलाह नहीं देती हैं। यदि हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, द्वेष इत्यादि को मासिक धर्म के दौरान अंगीकार कर सकते हैं, तो भला शुभ चिंतन में क्या आपत्ति हैं ।
यदि कोई महिला उपवास करती हैं, तो इस दौरान उपवास कर सकती हैं, लेकिन पूजा नही करे, जबकि मन मे जप कर सकती हैं । कई धर्म इस वक्त भगवान का नाम लेना भी गलत समझते हैं ।
एक बात जो मेरे दिमाग मे बार बार आती हैं, उसके अनुसार जब तक महिला मासिक धर्म मे नही होती हैं, तब तक वो माँ बनने लायक नही हो सकती ।
इस अनुसार जब मासिक धर्म नही होगा तो प्रकृति का नियम भंग होगा । मतलब मासिक धर्म प्रकृति की देंन हैं । फिर यदि मासिक धर्म नही होगा तो क्या हम जन्म ले पाएंगे ?
मै ये मानता हूं कि महिलाएं जीवन भर परिवार के कामकाज,बच्चो का ख्याल,पति, सास ससुर आदि की देखभाल मे थक जाती हैं, स्वाभाविक रूप से उन्हें माह मे कुछ दिन आराम की आवश्यकता जरूरी होगी ।शायद इसे सोचकर ही परम्परा डाली गई होगी ।
आजकल की पीढ़ी आगे बढ़ गयी हैं, परिवार सीमित हो गए हैं, भागा दौड़ की जिंदगी मे इन नियमो का पालन कर पाना भी दूभर हो गया हैं ।
जंहा एक और महिला स्पेस मे जा चुकी हो, जेट विमान की और बढ़ चुकी हो, दूसरी तरफ मासिक धर्म के नियम पालना आज के युग मे बेमानी लगता हैं।
अब ये तो वो बात हुई की किसी महिला का आज इंटरव्यू हो, और वो मासिक धर्म का बहाना लेकर देने नही जाए ?
धर्म के कुछ नियम जो हमने पुरानी रूढ़िवादिता के कारण अपना रखे हैं, आज ,अभी, इसी वक्त से हमे बदलना होगा ।
मै जानता हूं कि इस विषय पर सबकी राय अलग अलग होगी ,पर आप खुद सोचिये की क्या मासिक धर्म औरतो की सजा हैं, या आराम ?
आप सभी विचारों का स्वागत हैं। पर हिन्दू दर्शन हिन्दू धर्म मे
मासिक धर्म से युक्त स्त्री/ रजस्वला युक्त स्त्री, को पूजा नही करनी चाहिये अगर करती है तो विरह उनके साथ हो जाएगा
स्त्री के, मासिक धर्म प्रारम्भ होने के दिन से नियमानुसार अधिकतम सात दिन एवं नही तो कम से कम पाच दिन जब तक वो स्त्री अपने केश ना धुल ले उस दिन तक पूजा करना निषेध है, इस नियम से व्रत उपवास मे पूजा नही करना चाहिये अगर इस दौरान कोई एसा ब्रत पड रहा हो जिसको ना करने से ब्रत खंडित हो सकता है तब एसी अवस्था मे केवल खुद के हृदय मे भक्ति रख कर ब्रत पूरा करना या रखना चाहिए । यह नियम सभी स्त्री को मानना चाहिए ।मानना और न मानना आप का काम है।क्यूकी रजस्वला अवस्था मे यदि कोई पूजा की जाती है तो उसका लाभ या हानि उस स्त्री के पति को ही उठाना पडता है अत: एसी अवस्था मे पूजा करना मतलब जान बूझ कर अधर्म के आचरण मे आता है अत:
पति की उम्र बढाने के बजाय, पति की उम्र घटाने का प्रयत्न नही करना चाहिये।नही तो इससे विधवा योग उत्पन्न हो जाते है।

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