Monday 8 January 2018

The 11th house of FRIENDS

The 11th house in your horoscope says about your friends and gains.
Friends are an important part of your life. Just go back into your past and if it talks about a good relation with your friends or how much you helped them as and when it was possible by you and how they too responded in a positive way. It says your 11th house is well placed in your horoscope and you will always be blessed with good friends who can understand you well.
The two planets that signify friendship are planet Jupiter and Mars. If these two are well placed in your chart you can have friends who understand you well and will also help you as and when possible.
But Mars should not go in the 11th house or even to say Rahu or Ketu in 11th house are not good in this regard.
The 11th house also rules your elder siblings and your relationship with them is also seen from the 11th house.
If your friends are not able to understand you or even if your elder siblings are facing problems like obstacles, Health issue or career related problems it means your 11th house is effected. Always help your friends as and when it's possible by you.
As a remedy pacify your two planets - Mars and Jupiter by chanting their beej mantras, donating yellow daal and Masoor daal on Thursdays and Tuesdays, or even Thursday or Tuesday fasting if health permits.

The OTHER REALM and 12TH house..

The houses from 1st to 11th in your horoscope indulge you in the never ending world of ignorance in a network of dual acts like - I, he, mine,I gained, he lost, that, this, pleasure, pain, happiness, sadness ,relationships, love, hatred, success and failure.
But the 12th house goes beyond all these false notions of subjects, objects and materialism and hence kaal purush has placed it as the last house so that the native after going through all above material experiences of life from 1st to 11th house which only gives you sorrow and struggle, finally realizes that all this is truly immaterial which only seems to be as real.
Just how the Sun appears to rise and set but actually it never does so and is constant at a place, similarly the soul signified by Sun in astrology ever exists and actually never dies or takes birth but only appears to do so in the form of birth and death.
When you sit for meditation, you can activate your 12th house and clearly see the things as they are, making you see the truth of the unworthiness of this unworthy life which only appears to be worthy due to taking shape into a solid reality. The 12th house contains all those things which are far away but also reachable -meditative powers, other realm, liberation, occult, mysticism etc.
The gain from the 12th house is your 1st house again because soul is the significator of the 1st house. When the truth is realized that their is some power which is infinite, omnipotent, omnipresent, ever existing, formless and limitless who we perceive in various forms and names as God, Lord, Vishnu, Jesus, Allah etc , there are higher chances of your Soul to merge with that super soul and attain Moksha.
"He is a liberated sage who is not swayed by sense pleasure and who is without motivation of sense pleasure and other incentives" : as said by Sage Vasishtha
"He who is liberated, even while eating, seeing, smelling and tasting is neither elated nor depressed and he neither hates nor is attached because he knows only the body senses are involved and he is aloof": as said by Lord Krishna

Karma and Astrology

Universe is a combination of dualities and anxieties. The laws of nature and the time associated with it gives you good or bad results as per your karmic deeds and there is no escape from it. Freedom from it may be possible only if your actions are non-dual and anxiety free.

Your Ascendant decides your personality traits and the way you deal with things in different walks of life. If your ascendant and it's ruling planet are effected then you are bound to struggle. The 2nd house of wealth and family values if spoiled then probably you will face financial problems in future if you do not keep a check on it. The 6th house will trouble you related to enmity and health issues if you do not keep a check on your 2nd house.
The 3rd house of your subconscious mind can come to your rescue in matters related to 6th house to a good extent and to some extent in matters related to 2nd house by doing meditation on daily basis because it will activate your 3rd house and your mind will try to connect with the super soul and will start resting in peace, thus you won't react to any adversities or misgivings and to others mis leadings.
The 6th house is a negative house so to control it you need to activate your 3rd house of subconscious mind. The natural significator being Mercury it will now keep your mind anxiety and stress free. Once your mind is settled how does it make any difference to you with regards to how others are looking at you.
Once you activate your 3rd house, the 9th house of fortune and good deeds will also open up and will encourage you to perform religious deeds, to do some charity, sacrifices etc. And the auspicious planet Jupiter will help you. Thus all above combinations will help you at least smoothen your path ahead.

कुण्डली में धन योग धन से जुड़ी बातें बताते है--- कुंडली के ये 7 योग

जन्म कुंडली का दूसरा घर या भाव धन का होता है इस भाव से धन खजाना सोना चांदी हीरे मोती आदि बातों पर विचार किया जाता है साथ ही इस भाव से यह भी मालूम हो सकता है कि व्यक्ति के पास कितनी स्थाई संपत्ति रहेगी ये हैं इस भाव से जुड़े कुछ योग
1. जिस व्यक्ति की कुंडली में द्वितीय भाव पर शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो ऐसे व्यक्ति को बहुत धन प्राप्त हो सकता है
2. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के द्वितीय भाव में बुध हो तथा उस पर चंद्रमा की दृष्टि हो तो वह व्यक्ति हमेशा गरीब होता है ऐसे लोग कठिन प्रयास करते हैं लेकिन धन एकत्र नहीं कर पाते हैं
3. यदि कुंडली के द्वितीय भाव में किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वह व्यक्ति धनहीन हो सकता है ये लोग कड़ी मेहनत के बाद भी पैसों की तंगी का सामना करते हैं
4. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में द्वितीय भाव में चंद्रमा स्थित हो तो वह बहुत धनवान होता है उसके जीवन में इतना धन होता है कि उसे किसी भी सुख-सुविधा को प्राप्त करने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता है
5. यदि जन्म कुंडली के द्वितीय भाव में चंद्रमा स्थित हो और उस पर नीच के बुध की दृष्टि पड़ जाए तो उस व्यक्ति के परिवार का धन भी समाप्त हो जाता है
6. यदि कुंडली में चंद्रमा अकेला हो तथा कोई भी ग्रह उससे द्वितीय या द्वादश न हो तो व्यक्ति आजीवन गरीब ही रहता है ऐसे व्यक्ति को आजीवन अत्यधिक परिश्रम करना होता है परंतु वह अधिक पैसा नहीं प्राप्त कर पाता
7. यदि जन्म पत्रिका में सूर्य और बुध द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति के पास पैसा नहीं टिकता
#जय श्री राम#

पंचम भाव....जन्म मृत्यु..प्रारब्ध..

मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होने के पश्चात कहाँ जाता है,इस विषय पर बहुत से ग्रन्थ ,बहुत से विचार प्रस्तुत करते हैं..किन्तु जन्म लेने से पूर्व वो कहाँ से किस हालात से निकल कर आया है,ये जानकारी बहुत कम उपलब्ध होती है....ज्योतिष में इस विषय में बहुत रहस्यपूर्ण तरीके से आगे बढ़ा जाता है.लग्न व अष्ठम भाव से प्रभाव एक साथ एक दूसरे की ओर बढ़ता है..वो भी विपरीत कारक के साथ....कैसे???आइये समझते हैं...लग्न जातक का जन्म है तो अष्ठम मृत्यु...अब लग्न से अगला भाव अर्थात द्वितीय भाव ,,जन्म के पश्चात की पहली सांस है... इसके विपरीत अष्ठम से पहला अर्थात सप्तम भाव जीवन की अंतिम सांस है...एक तरफ से (लग्न से) प्रभाव आगे आने वाले कारकों के लिए बुनियाद तैयार कर रहा है,तो दूसरी ओर का प्रभाव ,अंतिम सत्य (अष्ठम मृत्यु ) से प्रारब्ध की बुनियाद तलाशने का प्रयास कर पीछे की यात्रा कर रहा है..
द्वितीय सांस के बाद तृतीय उसका आकार है,,,भविष्य की जद्दोजहद से लड़ने के लिए मनोबल ,पुरुषार्थ है....तो सप्तम से पीछे छठा भाव उस अंतिम सांस(सप्तम) के लिए कारण पैदा करने वाला भाव है....तृतीय के बाद चतुर्थ माँ की गोद है.. ..वहीँ षष्ठम भाव से पूर्व का पंचम भाव अंतिम सांस के कारण तय करने वाले भाव को उत्पन्न करने वाली भूमि है..यहाँ पाठक एक बात अवश्य गौर करें कि किसी भी भाव ,किसी भी ग्रह से सप्तम स्वतः ही उसके लिए अपोजिट प्रभाव उत्पन्न करने को मजबूर हो जाता है..अतः पंचम यदि प्रथम वस्त्र के रूप में माँ के आँचल के रूप में देखा जाता है तो एकादश इसी कारण अंतिम वस्त्र कफ़न का भाव है...लग्न को जातक माना जाय तो नवम उस भूमि का रूप है ,जिसपर ये पौधा उगा है,,,,,नवम पिता है तो नवम के पीछे पंचम उसका आधार है....इसी कारण स्पष्ट है कि जातक अपने अंश के रूप में भविष्य में जो पंचम(संतान) उत्पादन करने वाला है,वास्तव में ये ही भाव लग्न के निर्माण वाली भूमि(नवम) का आधार भाव है....अतः ज्योतिषी को सभी भाव त्यागकर सर्वप्रथम पंचम भाव का विवेचन करना श्रेष्ठ निर्णय लेने में सहायक बनता है...पंचम आपके पूर्व जन्म के किस्सों का भाव है व गुरु इस भाव का यात्री है..इसी कारण तो अष्ठम मृत्यु के बाद कालपुरुष में पहला भाव नवम गुरु का भाव है...कालपुरुष में पंचम सूर्य का भाव है जो वंश परंपरा का घोतक है, आप असल में अपने पिता का ही डीएनए हैं..और पिता आपके दादा का डीएनए....तो असल में आप दादा का ही रूप हैं...आप पिता से अधिक अपने दादा के डीएनए हैं....इसीलिए सामान्यतः अनुवांशिक बीमारियां एक पीढ़ी छोड़कर अधिक प्रबल रूप से सामने आती है....पंचम भाव आपके लिए तय कर चुका होता है कि निकट भविष्य में क्या आपके लिए मारक प्रभाव लाने वाला है...अतः मृत्यु कुंडली पंचम भाव को आधार रखकर करें तो बहुत से नए रहस्य सामने आते हैं.... ये षष्ठम रोग को व्यय करने वाला भाव है....अगर इसका रहस्य पकड़ आ गया तो शर्तिया जातक अटल मृत्यु को काटने की ताकत पा जाता है...आपने यूनानी कथाओं में फिनिक्स पक्षी का नाम सुना ही होगा...

शनि ग्रह अस्त होने पर सावधानियां तथा किए गए बुरे कर्म का फल

शनि देव की दशा में समस्या यह होती है कि जहां शनिदेव आते हैं वहां अन्य सभी देवी-देवता पितृ कृपा,"भाग्य की कृपा एक कदम पीछे" हो जाती हैं और उस समय उस विधाता मनुष्य को उसके स्वयं के कर्मों के आधार पर ही अकेला छोड़ देता है.क्योंकि जीव निश्चय ही पापी है अतः शनि की दशा में अन्य देवी,देवताओं,पित्र इत्यादि की कृपा ना होने पर उसे अपने पाप कर्मों के फल से बचाया नहीं जा सकता.🙏🏻 निश्चय ही शनि का काल कुछ ना कुछ चिंता-परेशानी अवश्य देता है .शनि के समय में सामाजिक व धार्मिक नियमों का पालन करना चाहिए यही सबसे बड़ा उपाय है. यदि आप नियम के मुताबिक चलते हैं तो शनि का समय अपने आप ही अच्छा हो जाएगा-
1. शनि ग्रह अस्त होने पर किसी पीड़ित मजदूर नौकर,किसी भी प्रकार से आपकी सेवा करने वाले ,किसान,कुत्ते,गरीब व्यक्ति,सफाई कर्मचारी, धातुओं से रिलेटेड कार्य करने वाले ,विधवा या पीड़ित महिलाओं को परेशान नहीं करना चाहिए.
2.शनि ग्रह से संबंधित वस्तुएं, लोहा,पैर से संबंधित चीजें,काले नीले रंग के कपड़े ,घर इत्यादि निर्माण सामग्री, लोहे के ,वाहन ,तेल इत्यादि नहीं खरीदना चाहिए या इनसे संबंधित चीजों में पैसा नहीं लगाना चाहिए.
3. घर मकान बनाना शुरू नहीं करना चाहिए .मकान में या किसी स्थाई संपत्ति जैसी चीज में आग लगने की संभावना भी रहती है.
शनि अस्त होने से पहले ही यदि यह कार्य आरंभ हो गए हैं तो कोई बात नहीं !
4. किसी के साथ वाद-विवाद अन्याय,धोखाधड़ी नहीं करना चाहिए. घमंड या क्रोध की वजह से दूसरे का हक नही दबाना चाहिए.
5. सरकारी नियमों का उल्लंघन न करे किसी से रिश्वत नहीं लेनी चाहिए या किसी अन्याय करने वाले की सिफारिश नहीं करनी चाहिए .
6. शनि देव सत्य के देवता हैं और गोचर में शनि अस्त होने पर या कुंडली में अस्त होने पर झूठ नहीं बोलना चाहिए,अपने वादे से नहीं पलटना चाहिए.
🌘🚩शनि देव द्वारा मिलने वाला दंड -
1. शनि ग्रह समय
आने पर आपके कर्म से होने वाले फायदे को सबसे पहले रोकते हैं.
2. नौकरी में समस्या,बेरोजगारी या लगती हुई नौकरी पर भी रोक लग जाना इसके अलावा भी कई मामलों में आपकी मेहनत बेकार हो जाती है .
3. प्रमोशन,सैलरी बढ़ने मे, जीवन की उन्नति मे बाधाएं आती हैं .
4. शरीर में या परिवार मे वायु-वात रोग,जोड़ों-पैरों की समस्या,स्नायु रोग इत्यादि देते है.
5. कानूनी कोर्ट की समस्या ,जुर्माना,जेल, करवाते है .
6. पूर्व जन्म या इसी जन्म के अत्यंत गंभीर पाप पर शनिदेव अपंगता देते हैं या या परिवार में किसी अपंग व्यक्ति का जन्म करवाकर कर्म का बुरा फल प्रदान करते हैं या अपंग व्यक्ति की सेवा करवाते है.
7.शनि देव मंद ग्रह होने की वजह से जरूरी कार्यों में धीमापन, रुकावट लाने का कार्य करते हैं,नियम-कानून रोक-टोक लगाकर मानसिक चिंता बढ़ा देते हैं.
8. अधिकार का देवता होने के कारण आपके अधिकारों में कमी कर देगा, झूठे आरोप लगना और लोगों से कुछ मांगने या झुकने पर मजबूर कर देते है जिससे आपको अपमानित महसूस हो सकता है.
जैसे- अपने ही उधार दिए गए पैसे को वापस मांगने के लिये बार-बार चक्कर लगाना पड़े.
शनिदेव के प्रकोप से बचने के कार्मिक उपाय -
जीवन में नियम-कानून सत्य धर्म इत्यादि का पालन करना चाहिए.
किसी गरीब या पीड़ित व्यक्ति या जीव-जंतु को बेकार में सताना नहीं चाहिए .
अपने अधिकार के लिए दूसरे का अधिकार नहीं छीन लेना चाहिए और शनि ग्रह अस्त या वक्री होने पर इस प्रकार के कार्य नहीं करना चाहिए

#शनि_को_समझना_भी_ज़रूरी_है

शनि की महादशा घर में आए मेहमान की तरह होती है। यदि मेहमान का स्वागत ना किया जाए तो वह कुछ रुष्ट सा हो जाता है। इसी तरह यदि महादशानाथ का पूजन ना किया जाए तो शुभ फल मिलने में विलम्ब हो सकता है। कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष के शनिवार से संध्या समय में शनि के लिए मंत्र जाप आरंभ करने चाहिए।
-----शनि कालपुरुष का दुख भी है अतः शनि की महादशा, साढ़े साती, ढैय्या में प्रत्येक जीव को कुछ कष्टों का सामना करना पड़ता है।
-----महिलाओं का व्यवहार भी ऐसी स्थिति में कभी कभी असामान्य सा प्रतीत होता है। ऐसी स्थितियों में कभी-कभी उन्हें समझ पाना बहुत ही मुश्किल सा हो जाता है। लगता है जैसे उन्हें किसी ने कुछ सिखा या करा दिया हो। कभी-कभी तो उनका स्वभाव ही बुरा लगने लगता है, पर असल मे ऐसी बात बिलकुल नहीं होती। हां हो सकता है, ग्रहों के अच्छे अथवा बुरे प्रभाव के कारण ऐसा हो।
-----ज्योतिष में शनि को कान, दांत, अस्थियाँ, स्नायु, चर्म, आयु, जीवन, मृत्यु, जीवन शक्ति, उदारता, विपत्ति, भूमिगत साधनों का कारक भी माना जाता है।
------किसी भी स्त्री की कुण्डली में अच्छा शनि उसे उदार एवं लोकप्रिय बनाता है साथ ही तकनीकी ज्ञान में भी आगे रखता है। शनि के शुभ प्रभाव वाली स्त्री हर क्षेत्र में अग्रणी हो कर प्रतिनिधित्व करती है। राजनीति में भी उच्च-से-उच्च पद तक पहुँचने में ज्यादा वक्त नहीं लगता ऐसे लोगों को।
-----कुण्डली में दूषित शनि स्त्री के विवाह में विलम्ब का कारण भी बन जाता है और निम्न स्तर के जीवन साथी की प्राप्ति की ओर भी संकेत करता है। ऐसी स्थिति में शनि स्त्री को ईर्ष्यालु और हिंसक बनाता है, एवं स्त्री में निराशा, उदासीनता और नीरसता लाता है। जिसके वजह से उसका दाम्पत्य जीवन को कष्टमय सा हो जाता है और फिर धीरे-धीरे वह अवसाद की तरफ बढ़ने लग जाती है जिसका परिणाम उसके जीवन में अच्छा असर नही देता है।