Thursday 24 August 2017

मंगल अथवा कुज दोष का कुछ लग्नो के लिए अपवाद

कुंडली में मंगल अगर 1-2-4-7-8-12 भाव में होता है तो जातक या जातिका मांगलिक माने जाते हैं। ऐसे जातक या जातिका की शादी में सावधानी बरती जाती है। और अक्सर पंडित जी लोग, कुछ तो अज्ञानता, और कुछ लालच की वजह से यजमानों को डरा भी देते हैं। लेकिन जिन ग्रन्थों ने "मंगल दोष" का निर्धारण किया है, उन्हीं ग्रन्थों ने इसका परिहार भी बताया है, जो निम्नवत है। अतः इसे पढिये और स्वयं अपनी कुंडली में, मंगल की स्थिति के अनुसार निर्धारण करिये।*
*(फिर भी बात ना बने तो अपने मनचाहे ज्योतिषी को दक्षिणा देकर कुंडली दिखाएं)*
*1.मेष लग्न के लिए अष्टम भाव में वृश्चिक राशि का मंगल स्वराशिस्थ होने की वजह से दीर्घायु दायक होता है।*
*2. मिथुन लग्न के लिए अष्टम भाव में मंगल एकादश भाव का स्वामी तथा षष्ट भाव का स्वामी होकर अष्टम भाव में अपनी उच्च राशि का (मकर राशि) होता है तथा षष्ट भाव का स्वामी होकर "हर्ष" नामक विपरीत राजयोग कारक होकर दीर्घायु कारक होता है।*
*3.कन्या लग्न के लिए अष्टम भाव में मंगल दीर्घायु दायक होता है , क्योंकि यहाँ मंगल स्वराशी मेष का होता है।*
*मंगल अथवा कुज दोष का परिहार:*
*1. मेष राशि का मंगल लग्न में हो तो कुंडली में स्वत: ही मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*2. द्वितीये भाव में मिथुन या कन्या राशि का मंगल हो तो कुंडली में स्वत:ही मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*3. चतुर्थ भाव में मंगल यदि वृश्चिक राशि का हो तो कुंडली में स्वत:ही मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*4. सप्तम भाव में मंगल यदि वृषभ राशि का हो तो कुंडली में स्वत:ही मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*5. कर्क राशि का मंगल यदि अष्टम भाव में हो तो कुंडली में स्वत:ही मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*6. द्वादश भाव में धनु राशि में मंगल हो तो कुंडली में स्वत:ही मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*7. यदि कुंडली में राहु लग्न से केंद्र भाव (1,4,7,10भाव) में हो तो मांगलिक दोष का परिहार होता है।*
*8. लग्न से केंद्र में चन्द्रमा हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*9. मंगल के साथ राहु हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*10.गुरु की त्रिकोण दृष्टि अर्थात पंचम, सप्तम तथा नवम दृष्टि, मंगल पर हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*11.उच्च का (मकर राशि का) मंगल हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*12.शुक्र व चन्द्रमा लग्न से द्वितीये भाव में हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।*
*13.लग्न का स्वामी हो कर मंगल, चन्द्रमा व शुक्र के साथ हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।*
*14. जिस भाव में मंगल हो जहाँ से मंगल दोष उत्पन्न होता हो वहा शनि भी हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।*
*15. शनि की दृष्टि यदि मंगल पर हो तो भी मंगल दोष परिहार माना गया है।*
*लेकिन शादी-व्याह के लिये केवल "मंगल दोष" का कुंडली में होने से ना डरने की जरूरत है... और ना ही उसका परिहार हो जाने से संतुष्ट होने की जरूरत है। क्योंकि कुंडली मिलान में "दोषों" के परिहार के साथ साथ "अष्टकूटों" का पूर्ण मिलान भी अति आवश्यक है।*
*ऐसा प्राय: देखा गया है की जिन कुंडलियो में मंगल दोष नहीं था उनका भी वैवाहिक जीवन टूटा तथा जिनकी कुंडलियो में मंगल दोष था वे भी एक लम्बे दीर्घायु जीवन को पूर्ण कर सके।*
*अत: किसी भी पुरुष-कन्या के विवाह के लिए कुंडली की जांच मात्र "मंगल दोष" का होना या न होना पर न निर्भर रहे वरन यह भी देखा जाये की-*
*1. पुरुष या कन्या की आयु अधिक है या नहीं (आयुर्दय)यदि आयु पूर्ण है तो विवाह का सुख भी पूर्ण रह सकता है।*
*2.पुरुष और कन्या रोग मुक्त है या नहीं,कुंडली में जांच आवश्यक है।*
*3. विवाह के बाद आने वाली ग्रहों की महा दशा,अन्तर्दशा शुभ रहेगी या अशुभ।*
*4.कुंडली में संतान का शुख है या नहीं यह भी वैवाहिक जीवन के लिए आवश्यक है।*
*5.यदि लग्न बलि है तो समस्त सुख की प्राप्ति की अपेक्षा रखी जा सकती है।*

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