Thursday 28 June 2018

उत्तम संतान की प्राप्ति हेतु गर्भाधान का समय-*

*संतान प्राप्ति के लिए उपाय:-*
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अश्विनी, रेवती, भरणी, मघा, मूल इन नक्षत्रों में समागम
वर्जित है।
दिन में समागम करने से आयु व बल का ह्रास होता है।
गर्भाधान हेतु सप्ताह के 7 दिनों की रात्रियों के शुभ समय
इस प्रकार हैं-
रविवारः 8 से 9, 1.30 से 5
सोमवारः 10.30 से 12, 1.30 से 4
मंगलवारः 7.30 से 9, 10.30 से 1.30
बुधवारः 7.30 से 10, 3 से 4.30
गुरुवारः 12 से 1.30, 3 से 5
शुक्रवारः 9 से 10.30, 12 से 3.30
शनिवारः 9 से 12
रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 15 व अंतिम 15 मिनट
का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित
करें।
गर्भाधारण के पूर्व कर्तव्यः
रात्रि तथा समय कम से कम तीन दिन पूर्व निश्चित कर
लेना चाहिए। निश्चित रात्रि में शाम होने से पूर्व पति-
पत्नी को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन कर सदगुरु व
इष्टदेवता की पूजा करनी चाहिए। संभव हो तो हवन
करना चाहिए।
गर्भाधान एक प्रकार का यज्ञ है। इसलिए इस समय सतत
यज्ञ की भावना रखने चाहिए, विलास
की दृष्टि नहीं रखनी चाहिए।
पति-पत्नी दोनों को अपनी चित्तवृत्तियाँ परमात्मा में
स्थिर करनी चाहिए व उत्तम आत्माओं को प्रार्थना करते
हुए उनका आह्वान करना चाहिएः 'हे ब्रह्माण्ड में विचरण
कर रहे सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओ ! हम
दोनों आपको प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे घर, जीवन में
देश को पवित्र तथा उन्नत करने के लिए आप हमारे
यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें। हम दोनों अपने
शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बनायेंगे।'
पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और
स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में शय्या पर चढ़े।
तत्पश्चात् शय्या पर निम्नलिखित मंत्र पढ़ना चाहिएः


*अहिरसि आयुरसि सर्वतः*
*प्रतिष्ठासि धाता त्वां दधातु*
*विधाता त्वां दधातु ब्रह्मवर्चसा भवेति।*
*ब्रह्मां बृहस्पतिर्विष्णुः सोम सूर्यस्तथाऽश्विनौ।*
*भगोऽथ*
*मित्रावरुणौं वीरं ददतु में सुतम्।।*
'हे गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो। तुम मेरी आयु हो, तुम सब
प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो। धाता (सबके पोषक ईश्वर)
तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा)
तुम्हारी रक्षा करें। तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओ।
ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु सोम सूर्य, अश्विनीकुमार और
मित्रावरूण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान
करें।
दोनों गर्भ विषम में मन लगाकर रहें। ऐसा करने से
तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज
को ग्रहण करती है। विधिपूर्वक गर्भधारण करने से
इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है

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