शनि नाम ही काफी है। यदि कहा गया कि आपकी शनि की साढ़ेसाती है या ढैया है तो बस उसी वक्त से मन मे घबराहट शूरू हो जाती है।
#कर्म के देवता है शनि, ये तो अकसर सुना ही आपने। पर कौन से कर्म? इस जन्म के की पिछले जन्म के की दोनों के?
#वास्तव मे शनि तो सभी प्राणी जीव के कर्मों का ध्यान रखते हैं। कर्म दो प्रकार से होते हैं। 5 ज्ञानेन्द्रियो से और 5 कर्मेन्द्रियों से।
अगर किसी ने आपके बारे मे बुरा कहा और आप गुस्सा हो गए या कुछ अनाबशनाब बोल दिया; हो गया शनि खराब। रास्ते मे किसी के वजह से ट्रैफिक होना; किसी की गाडी आपसे टकरा जाना; जैसी बहोत सारी छोटी बडी घटनाएं रोजमर्रा के जिवन मे होती रहती है।
#आप सोचेगे कि यहा शनि का क्या काम ?
यही पर या एसी विपरीत परिस्थितियों में अगर आपमे मेच्योरिटी हो; आप शांति से पेश आओ और धैर्य बनाकर रखो तो शनि खुश हो जाता है।
#पारिवारिक मतभेदों मे अहम और घमंड रखना, किसी को मदद करके उसको सुनाना, प्यार और विश्वास का दुरूपयोग करना, - इन सारी बुराइयों से आप शनि के खराब परिणाम का स्वागत करते है।
मेच्योर बनना है - वही शनि है।
धैर्य और संयम रखना है - वही शनि का स्वभाव है।
बदला ना लेना - शनि की पसंद है।
जुठ ना बोलना - शनि की प्रगति है।
समाधान रखना - शनि की तुलनात्मकता है।
धैर्य और संयम रखना है - वही शनि का स्वभाव है।
बदला ना लेना - शनि की पसंद है।
जुठ ना बोलना - शनि की प्रगति है।
समाधान रखना - शनि की तुलनात्मकता है।
मन, आत्मा और सद्विचारों की उन्नति के प्रयास करना ही शनि को खुश करने कि मास्टर की है।
आशा करता हूँ कि आपको मेरी पोस्ट अच्छी लगेगी और मन को हमेशा शांत रखने का आपका अभ्यास आज से ही शूरू हो जाएगा
No comments:
Post a Comment