Thursday 30 August 2018

ज्योतिष में ब्रहसपति और जातक

ज्योतिष में ब्रहसपति और जातक
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ब्रहसपति गुरु है, ग्यान है, प्रकाश है, सीखने की ललक है, अनुशासन है, बडो का आशिर्वाद है, कमज़ोरो के लिये मदद करने वाला है, दुनिया और रिश्ते नातो का ग्यान और मान सम्मान है | यदी किसी जातक की कुण्डली में ब्रहसपति शत्रु राशी में हो या ग्रह ( बुध, शनि, शुक्र, राहु, केतु ) तो जातक का ब्रहसपति पीडित माना जाता है | ऐसे जातक को चीज़ो को समझने में परेशानी होती है, पढाई में रुकावटे आती हैं और बडो से प्यार और दुलार नहीं मिलता, जीवन में हमेशा भटकाव की सथिती रहती है | जब ब्रहसपति शनि के साथ या शनि की राशि में या फ़िर शनि की दृष्टि में होता है तो जातक को बडो से प्यार दुलार नहीं मिलता, टीचर्स से इन्ट्रैकशन बहुत कम होता है या फ़िर जातक टीचर्स के सानिधय में रहना ही नही चाहता और उसकी पढाई प्राईवेट होती है खास कर डिगरी, जातक प्यार और दुलार के मामले में अकेलापन फ़ील करता है, जातक खुद भी रिश्तो को निभाने और मान सम्मान करने के मामले में कम होता है, हालकि जातक हर किसी का खयाल रखता है लेकिन रिश्तो में वो मज़ा नहीं होता या फ़िर रूखापन होता है | जातक के बड़े उसके लिये किसी सख्त टीचर की तरह व्यवहार करते हैं या फ़िर जातक खुद भी एक अनुसाशित व्यक्ति होता है और इस में कोई बुराई भी नही है | कुण्डली में जब ब्रहसपति बुध के साथ या बुध की राशि में या फ़िर बुध की द्रिश्टी में होता है, तो ऐसे में जातक समझदार होता है, अच्छी बुधी वाला, अच्छी शिक्षा वाला, रिश्तो और दुनियादारी की अच्छी समझ रखने वाला, लेकिन लिवर और अंतडिया के सही काम ना करने के कारण कमज़ोर शरीर वाला या फ़िर ज़्यादा फ़ैटी भी हो सकता है उम्र बढने के साथ साथ, ऐसे जातक अच्छे पलैन मेकर होते हैं, सोच से दिमाग से पैसा कमाने वाले होते हैं और ज़्यादारतर मैनेज़मेन्ट और ऐच आर फ़ीलड में होते है, क्युकि इनका काम होता है दुनिया में लोगो को कनेक्ट करना होता है, जैसे त्यार प्रोडकट को मारकेट में भेजना, लोगो को ऐडवाईज़ देना, या फ़िर किसी कम्पनी में रह कर उसके भविष्य के लिये प्लैन करना या पैसे को इनवैसट करना |
* जब कुण्डली में ब्रहसपति शुक्र के साथ या उसकी राशि में या फ़िर द्रिश्टी में हो, तो ऐसा जातक उच्च विद्या प्राप्त करने वाला, विदेश जाकर पढने वाला, रिसर्च करने वाला, खुश रहने वाला और दूसरो को खुशी देने वाला, मान सम्मान प्राप्त करने वाला, कला और सोन्द्रय में रुची रखने वाला या इन से सम्बन्ध कार्य करने वाला और जवेलरी का शोक रखने वाला होता है, परिवार और दुनियादारी का भरपूर सुख प्राप्त करने वाला होता है और कभी कभी लडकियो में ज़्यादा रुचि रखने वाला भी होता है, और अगर लडकी है तो उसके मेल दोस्त ज़्यादा होते हैं | यदि कुण्डली में ब्रहसपति राहु के साथ हो या द्रिश्टी में हो तो चन्डाल योग बनता है, लेकिन इस का मतलब ये नहीं के जातक में कोई बुराई होगी | बलकि जो जातक को गुरु मिलता है वो चन्डाल होता है, धोखा देने वाला होता है | जातक जिस पर भी भरोसा करता है वही उसको धोखा देता है | खास कर जिन लडकियो की कुण्डली में ऐसा योग होता है, उनहे शादी के मामले में फ़ैसला सोच समझ कर और बडो की सलाह से लेना चाहिए, और लड़को से सतर्क रहना चाहिये, उनसे लिमिट में ही बात चीत करनी चाहिये और प्रेम सम्बन्ध कभी भी नही बनाने चाहिये, बडो की अनुमति के बिना विवाह नहीं करना चाहिये | और यदि किसी वझा से विवाह में देरी हो रही हो तो भी रिश्ता आने पर उसकी अच्छी तरह से पडताल जांच करके ही रिश्ता करना चाहिए | और हमेशा बडो के और गुरु के सानिधय में रहना चाहिये, चीज़े देर से मिलती हैं लेकिन मिलती ज़रुर हैं | और कोई ज़्यादा घबराने वाली बात नहीं है इस राहु गुरु के चन्डाल योग से, अफ़वाहो से बचना चाहिए और सब्र से चीज़ो का इन्तज़ार करना चाहिये |

कालसर्प दोष

कालसर्प योग जन्म-कुण्डली मे बनने वाला एक योग है । बहुत से विद्वान इस योग को नहीं स्वीकार करते । समस्याएं हैं अगर तो उनका सस्ता प्रभावशाली स्वयं करने वाला जाप व उपाय भी है । दुनिया के बहुत सफल तथा प्रसिद्ध लोगो की कुण्डली में यह योग देखा गया है । काल सर्प योग कब दण्ड देता है -
१. जब-जब राहु की दशा , अन्तर्दशा,, प्रत्यन्तर्दशा आती है |
२. जब - जब भी गोचरवशात राहु अशुभ चलता हो |
३. जब भी गोचर से काल सर्प योग की सृष्टि हो
जब अन्य सभी ग्रह राहु-केतु के एक तरफ होते हैं तो कुण्डली में काल-सर्प योग (दोष) बनता है । मुख्य रूप से १२ कालसर्प दोष हैं -
१) अनन्त कालसर्प दोष- जब राहु प्रथम भाव में हो तथा केतु सातवें भाव में हो | जातक को जल्दी गुस्सा आता है | सफाई पसंद नहीं रहता | विवाहित जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है |

२) कुलिक कालसर्प दोष -जब राहु द्वितीय भाव में हो तथा केतु अष्टम भाव में हो | सम्पति पर बुरा प्रभाव पड़ता है | जुबान पर नियंत्रण नहीं रहता | दुर्घटना और शल्य-चिकित्सा भी करवा देता है |
३) वासुकी कालसर्प दोष -जब राहु तृतीय भाव में हो तथा केतु नवम भाव में हो | छोटे भाई-बहन से नहीं निभ पाती | कार्य के लिए संघर्ष नहीं कर पाता |
४) शंखपाल कालसर्प दोष -जब राहु चतुर्थ भाव में हो तथा केतु दशम भाव में हो | सुख-सुविधा में कमी आती है | कारोबार और नौकरी में परेशानी रहती है | माता सुख में कमी | अधिक गुस्सा |
५) पद्म कालसर्प दोष -जब राहु पंचम भाव में हो तथा केतु एकादश भाव में हो | शिक्षा प्रभावित होती है | औलाद होने में देरी | प्रेम-सम्बन्ध में समस्या |
६) महापद्म कालसर्प दोष -जब राहु छठे भाव में हो तथा केतु द्वादश भाव में हो | अधिक दुशमन | कर्जा , शारीरिक कमजोरी |
७) तक्षक कालसर्प दोष -जब राहु सातवें भाव में हो तथा केतु प्रथम भाव में हो | vivahik जीवन पर बुरा असर | विवाह में देरी | सिरदर्द ,उच्च रक्तचाप , क्रूरता |
८) कर्कोटक कालसर्प दोष -जब राहु अष्टम भाव में हो तथा केतु द्वितीय भाव में हो | बीमारी , bachat में कमी | ससुराल से झगड़ा | पैतृक़ सम्पति मिलने में रुकावट |
९) शंखचूड़ कालसर्प दोष -जब राहु नवम भाव में हो तथा केतु तृतीय भाव में हो | जुए,सट्टे की आदत | नास्तिक | रिश्तेदारों से झगड़ा | दुर्भाग्य |
१०) पातक कालसर्प दोष -जब राहु दशम भाव में हो तथा केतु चतुर्थ भाव में हो | सुविचारों में कमी | मानसिक अशांति |
११) विषधर कालसर्प दोष -जब राहु एकादश भाव में हो तथा केतु पंचम भाव में हो | पैसा कमाने में समस्या | अधिक यात्रा | भाई दुश्मन बन जाता है | बच्चे से भी परेशानी |
१२) शेषनाग कालसर्प दोष -जब राहु द्वादश भाव में हो तथा केतु छठे भाव में हो | कर्जा , सम्मान में कमी | दुश्मन से नुक्सान | बीमारी |

जानिए किसी भी जन्म कुंडली में राहू (RAHU ) ग्रह के कारण बनने वाले 21 विशेष शुभ अशुभ योग और प्रभाव को….


जानिए किसी भी जन्म कुंडली में राहू (RAHU ) ग्रह के कारण बनने वाले 21 विशेष शुभ अशुभ योग और प्रभाव को….
यदि राहू के साथ शनि और सूर्य का प्रभाव भी सप्तम भाव से संबंधित घटकों पर हो अशुभ फलों में और तीव्रता आ जाती है।
यदि किसी कुंडली में राहू , शनि की युति हो तो शनि का प्रभाव दुगना हो जाता है।
ये हैं कुछ विशेष प्रभावी योग—
१. यदि मेष, वृषभ, या कर्क राशि का राहू तीसरे, षष्ठ अथवा एकादश भाव मे होतो, यह राहू अनेक अशुभ फलों का नाश कर देता है।
२. यदि राहू केंद्र , त्रिकोण १, ४, ७, १०, ५, ९ वे भाव में हो और केन्द्रेश या त्रिकोणेश से सम्बन्ध रखता हो तो यह राज योग प्रदान कर देता है।
३. यदि १० वे भाव में राहू होतो, यह राहू नेतृत्व शक्ति प्रदान करता है।
४. यदि सूर्य, चन्द्र के साथ राहू होतो, यह राहू इनकी शक्ति को कम करता है।
६. जिस जातिका के पंचम भाव में राहू होता है , उस जातिका का मासिक धर्म अनियमित होता है, जिस कारण से जातिका को संतान होने में परेशानी हो सकती है।
७. यदि पंचम भाव में कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि हो और उसमे राहू, शुक्र की युति होतो, वह जातिका प्रेम जाल में फंस जाती है।
८. य़दि पंचम भाव में राहू, शुक्र की युति हो तो, वह जातिका यौन रोग , अथवा प्रसव सम्बंधित रोगों से ग्रसित होती है।
९. यदि अष्टम भाव में मेष, कर्क, वृश्चिक, या मीन राशि हो और उसमे राहू स्थित होतो, जातिका की शल्य क्रिया अवश्य होती है।
१०. सप्तम भाव में राहू, शनि, तथा मंगल की युति होतो, दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।
११. यदि ८ वे भाव में शनि, राहू, व मंगल होतो, उस जातिका/ जातक के ८०%तलाक की संभावना होती है। अथवा जीवन भर वैचारिक मतभेद रहते है।
१२. यदि मेष, या वृश्चिक राशि में ८ वे भाव में या २ रे भाव में राहू पाप ग्रह से युत अथवा दृष्ट होतो, जातिका का दाम्पत्य जीवन कष्टमय होता है।
१३. यदि पंचम भाव में राहू मेष या वृश्चिक राशि का हो अथवा मंगल की दृष्टि हो तो , उस जातिका की संतान की हानि होती है।
१४. यदि राहू , गुरू की युति होतो, जातिका का एक बार गर्भपात होता है।
१५. सप्तम भाव में स्थित राहू दाम्पत्य जीवन को कष्टमय कर देता है।
१६. यदि २ रे भाव में धनु राशि का राहू होतो, जातिका धनवान हो जाती है।
१७. एकादश भाव में राहू , शुक्र की युति हो तो जातिका का दाम्पत्य जीवन बहुत दुःखी होता है।
१८. यदि शुक्र अथवा गुरू पर राहू की दृष्टि होतो, जातिका अंतर्जातीय एवं प्रेम विवाह करती है।
१९. यदि २ रे या पंचम भाव में राहू होतो , उस जातिका का विवाह बहुत कठिनाई से होता है।
२० यदि ८ वे भाव या ११ वे भाव में राहू होतो, उस जातिका का विवाह तो हो जाता है , किन्तु दाम्पत्य जीवन कष्टप्रद होता है। अथवा अलगाव/तलाक की आशंका अधिक होती है।
२१. राहू की दृष्टि सप्तम भाव , सप्तमेश, मंगल, व शुक्र पर होतो, ऐसी जातिका अंतर्जातीय विवाह करती है।